Monthly Archive: September 2020
रोज उठकर यह जान लेना चाहिए sanskrit shlok in hindi यौवनं जीवितं चित्तं छाया लक्ष्मीश्च स्वामिता ।चञ्चलानि षडेतानि ज्ञात्वा धर्मरतो भवेत् ॥ यौवन, जीवन, चित्त, छाया, लक्ष्मी और सत्ता – ये छे चंचल है,...
राष्ट्र के संस्कृत श्लोक हिन्दी में February 27, 2019 admin 0 Comments यौवनं धनसंपत्ति प्रभुत्वमविवेकिता ।एकैकमप्यनर्थाय किमु यत्र चतुष्टयम् ॥ युवानी, धन, सत्ता और अविवेक ये हर अपने आप में ही अनर्थकारी है, तो फिर जहाँ...
वास्तविक वृद्ध कौन है? sanskrit shlok वृद्धश्रोतव्यं खलु वृध्दानामिति शास्त्रनिदर्शनम् । वृद्धों की बात सुननी चाहिए एसा शास्त्रों का कथन है । वृद्धवृध्दा न ते ये न वदन्ति धर्मम् । जो धर्म की बात...
ऐसे देशों में नहीं रहना चाहिए sanskrit shlok: नेयं स्वर्णपुरी लङ्का रोचते मम लक्ष्मण ।जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी ॥ हे लक्ष्मण ! यह स्वर्णपुरी लंका मुझे अच्छी नहीं लगती । माँ और मातृभूमि स्वर्ग...
भक्ति पर संस्कृत श्लोक हिन्दी में श्रवणं कीर्तनं विष्णोः स्मरणं पादसेवनम् ।अर्चनं वन्दनं दास्यं सख्यमात्मनिवेदनम् ॥ श्रवण (उ.दा. परीक्षित), कीर्तन (शुकदेव), स्मरण (प्रह्लाद), पादसेवन (लक्ष्मी), अर्चन (पृथुराजा), वंदन (अक्रूर), दास्य (हनुमान), सख्य (अर्जुन), और...
एकता पर संस्कृत श्लोक हिंदी में: बहवो न विरोध्दव्याः दुर्जयास्तेऽपि दुर्बलाः । स्फुरन्तमपि नागेन्द्रं भक्षयन्ति पिपीलिकाः ॥ अनेक लोगों का विरोध नहि करना चाहिए । वे दुर्बल हो तो भी दुर्जय बनते हैं ।...
अभय पर संस्कृत श्लोक हिन्दी में: नाभिषेको न संस्कारः सिंहस्य क्रियते वने । विक्रमार्जितसत्त्वस्य स्वयमेव मृगेंद्रता ॥ सिंह को जंगल का राजा नियुक्त करने के लिए न तो कोई अभिषेक किया जाता है, न...
विद्या पर संस्कृत श्लोक हिन्दी में संयोजयति विद्यैव नीचगापि नरं सरित् । समुद्रमिव दुर्धर्षं नृपं भाग्यमतः परम् ॥ जैसे नीचे प्रवाह में बहेनेवाली नदी, नाव में बैठे हुए इन्सान को न पहुँच पानेवाले समंदर...
धर्म पर संस्कृत श्लोक हिन्दी में तर्कविहीनो वैद्यः लक्षण हीनश्च पण्डितो लोके ।भावविहीनो धर्मो नूनं हस्यन्ते त्रीण्यपि ॥ तर्कविहीन वैद्य, लक्षणविहीन पंडित, और भावरहित धर्म – ये अवश्य हि जगत में हाँसीपात्र बनते हैं...
तपस्या पर संस्कृत श्लोक हिन्दी में: मनःप्रसादः सौम्यत्वं मौनमात्मविनिग्रहः ।भावसंशुद्धिरित्येतत्तपो मानसमुच्यते ॥ मन की प्रसन्नता, सौम्यभाव, मौन, आत्मचिंतन, मनोनिग्रह, भावों की शुद्धि – यह मन का तप कहलाता है । अनुद्वेगकरं वाक्यं मुद्रण ई-मेलअनुद्वेगकरं...
Recent Comments