दुर्जन पर संस्कृत श्लोक हिंदी में Part2 Top Sanskrit Shlok

दुर्जन पर संस्कृत श्लोक हिंदी में Part2 Top Sanskrit Shlok

  • वर्जनीयो मतिअमता दुर्जनः सख्यवैरयोः ।
  • श्र्वा भवत्यपकाराय लिहन्नपि दशन्नपि ॥
  • मतिमान मनवको दुष्टके साथ मैत्री या बेर नहीं करना चाहिए । कुत्ता चाटता है तो भी और काटता है तो भी नुकसान हि करता है ।
  • यस्मिन् वंशे समुत्पन्नः तमेव निजचेष्टितैः ।
  • दूषयत्यचिरेणैव धुणकीट इवाधमः ॥
  • उधई की तरह अधम मानव जिस कुल में पैदा हुआ हो उसे अपने हि कृत्य से थोडे समय में दूषित करता है ।
  • बहुनिष्कपटद्रोही बहुधान्योपधातकः ।
  • रन्धान्वेषी च सर्वत्र दूषको मूषको यथा ॥
  • चूहे की तरह दुष्ट भी निष्कपटी लोगों का द्रोह करनेवाला (किमती वस्त्र को खा जाने वाला), ज़ादा करके दूसरेको घात करनेवाला (धान्यका नाश करनेवाला) और छिद्र ढूँढनेवाला (दरको ढूँढने वाला) होता है ।
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  • अलकाश्र्च खला मूर्धभिः सुजनैः धृताः ।
  • उपर्युपरि संस्कारेऽप्याविष्कुर्वन्ति वक्रताम् ॥
  • सज्जन द्वारा मस्तक पर धारण किये गये बालक और दुष्ट लोग बारंबार संस्कार देनेके बावजुद अपनी वक्रता को प्रकट करते हैं ।
  • क्वचित् सर्पोऽपि मित्रत्वमियात् नैव खलः क्वचित् ।
  • न शोषशायिनोऽप्यस्य वशे दुर्योधनः हरेः ॥
  • कभी सर्प भी मित्र बन सकता है, किन्तु दुष्ट कभी मित्र नहीं बनाया जा सकता । शेषनाग पर शयन करनेवाले हरि का भी दुर्योधन मित्र न बना !
  • अपूर्वः कोऽपि कोपाग्निः खलस्य सज्जनस्य च ।
  • एकस्य शाम्यति स्नेहात् वर्धतेड्न्यस्य वारितः ॥
  • दुष्ट का और सज्जन का कोपाग्नि अदभूत है, एक का क्रोध तेल (स्नेह) से शांत हो जाता है, जब कि दूसरे का पानी में डूबोने के बावजुद बढता है ।
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  • विशिखवव्यालयोरंत्यवर्णाभ्यां यो विनिर्मितः ।
  • परस्य हरति प्राणान् नैतत्त्चित्रं कुलोचितम् ॥
  • बाण और जंगली पशु के अंत्यवर्ण से जो उत्पन्न हुआ है, वह दूसरेका प्राण हर लेता है उसमें आश्चर्य नहीं । वह तो उन के कुल को उचित हि है ।
  • जाडयं ह्लीमति गण्यते व्रतरुचौ दम्भः शुचौ कैतवम्
  • शूरे निर्धृणता मुनौ विमतिता दैन्यं प्रियलापिनि ।
  • तेजस्विन्यवलिप्तता मोखरता वक्ततरि अशक्तिः स्थिरे
  • तत्को नाम भवेत् सुगुणिनां यो दुर्जनै र्नांकितः ॥
  • दुष्ट लोग सज्जन की शर्मिली वृत्ति को जडता, व्रत की रुचि को दंभ, पवित्रता को कपट, शांतता को विमतिता, प्रियवचनों को दीनता, तेजस्विता को घमंड, वाणी को वाचाळता, और स्थिरता को अस्थिरता मानते हैं । सज्जन का एसा कौन सा गुण है जो दुर्जन द्वारा इस तरह न समजा जाता हो ?
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  • गुणायन्ते दोषाः सुजनवदने दुर्जन्मुखे
  • गुणाः दोषायन्ते तदिदं नो विस्मयपदम् ।
  • महमेघः क्षारं पिबति कुरुते वारि मधुरम्
  • फणी क्षीरं पीत्वा वमति गरलं दुःसहतरम् ॥
  • सज्जन के मुख में दोष गुण बनते हैं, लेकिन दुर्जन के मुख में गुण भी दोष बन जाता है उसमें आश्चर्य नहीं है; बादल नमकीन पानी पीता है ओर उसको मधुर बनाता है, जबकि सर्प तो दूध पीकर भयंकर झहर निकालता है !
  • खलः करोति दुर्वृत्तं नूनं फलति साधुषु ।
  • दशाननो हरेत् सीतां बन्धनं स्याद् महोदधेः ॥
  • दुष्ट मानव खराब कार्य कारता है ओर उसका फ़ल अच्छे मानवको भुगतना पडता है । रावण सीता का हरण करता है ओर सागर को बंधना पडता है ।

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