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दुष्ट पर संस्कृत श्लोक हिंदी में

दुष्ट पर संस्कृत श्लोक हिंदी में :-

  • यथा परोपकारेषु नित्यं जागर्ति सज्जनः ।
  • तथा परापकारेषु जागर्ति सततं खलः ॥
  • जैसे सज्जन परोपकार करने में नित्य जाग्रत होता है, वैसे दुर्जन अपकार करने में हमेशा जाग्रत होता है ।
  • तक्षकस्य विषं दन्ते मक्षिकायाश्र्च मस्तके ।
  • वृश्र्चिकस्य विषं पृच्छे सर्वांगे दुर्जनस्य तत् ॥
  • सर्प का झहर दांत में, मक्खी का मस्तक में और बिच्छु का पूंछ में होता है । लेकिन दुर्जनका झहर तो उसके पूरे अंग में होता है ।
दुष्ट पर संस्कृत श्लोक हिंदी में:
  • दुर्जनः स्वस्वभावेन परकार्य विनश्यति ।
  • नोदरतृप्तिमायाति मुषकः वस्त्रभक्षकः ॥
  • दुर्जन अपने स्वभाव से हि दूसरे के कर्य को हानि पहुँचाता है । वस्त्रभक्षक चूहा उदर तृप्ति के लिए वस्त्र नहीं काटता !
  • खलानां कण्टकानां च द्विविधैव प्रतिक्रिया ।
  • उपानन्मुखभंगो वा दूरतो वा विसर्जनम् ॥
  • दुष्ट मानव और कंटक को दूर करने के दो हि उपाय है, या तो जूते से मुख तोड दो, या तो दूर से हि भगा दो ।
  • कापुरुषः कुकुरश्र्च भोजनैकपरायणः ।
  • लालितः पार्श्र्चमायाति वारितः त च गच्छति ॥
  • कापुरुष और कुत्ता दोनों भोजन परायण होते है । प्यार करने से पास आते हैं और दूर करनेसे जाते नहीं ।
  • दुर्जनस्य विशिष्टत्वं परोपद्रवकारणम् ।
  • व्याघ्रस्य चोपवासेन पारणं पशुमारणम् ॥
  • दुर्जन कोई विशेष कार्य करे तो दूसरे के उपद्रव का कारण बनता है । शेर अगर उपवास करे तो उसके दूसरे दिन का खाना पशु की हत्या होती है ।
दुष्ट पर संस्कृत श्लोक हिंदी में:
  • दुर्जनः प्रियवादी च नैतद्विश्र्चासकारणम् ।
  • मधु तिष्ठति जिह्याग्रे हदये तु हलाहलम् ॥
  • दुर्जन प्रियबोलनेवाला हो फिर भी विश्वास करने योग्य नहीं होता क्यों कि चाहे उसकी जबान पर भले हि मध हो, पर हृदय में तो हलाहल झहर हि होता है ।
  • दुर्जनो दोषमादत्ते दुर्गन्धमिव सूकरः ।
  • सज्जनश्र्च गुणग्राही हंसः क्षीरमिवाम्भसः ॥
  • सूअर जैसे दुर्गंध को वैसे दुर्जन दोष को ग्रहण करता है । और हंस जैसे पानी में से दूध को वैसे सज्जन गुणको ग्रहण करता है ।
  • न विना परवादेन रमते दुर्जनो जनः ।
  • काकः सर्वरसान् भुंक्ते विनाऽमध्यं न तृप्यति ॥
  • लोगों की निंदा किये बिना दुर्जनों को आनंद नहीं आता । कौए को सब रस भुगतने के बावजुद गंदगी बिना तृप्ति नहीं होती ।
  • स्पृशन्नपि गजो हन्ति जिघ्रन्नपि भुजंगमः ।
  • हसन्नपि नृपो हन्ति मानयन् अपि दुर्जनः ॥
  • स्पर्श करने से हाथी, सुंघने से सर्प, और हसते राजा (अन्य को) मार देता है । वैसे ही मान देनेके बावजुद दुर्जन मानव को मार देता है ।
दुष्ट पर संस्कृत श्लोक हिंदी में
  • दुर्जनः परिहर्तव्यः विध्ययालंकृतोऽपि सन् ।
  • मणिना भूषितः सर्पः किमसो न भयंकरः ॥
  • दुर्जन विद्या से अलंकृत हो फ़िर भी उसका त्याग करना चाहिए । मणि से भूषित सर्प क्या भयंकर नही होता?
  • उपकारोऽपि नीचानामपकारो हि जायते ।
  • पयः पानं भुजंगानां केवलं विषवर्धनम् ॥
  • नीच मानव पर किया उपकार भी अपकार बनता है । सर्प को पिलाया दूध केवल विष ही बढाता है ।
  • खलो न साधुतां याति सदिः संबोधितोपि सन् ।
  • सरित्पूरप्रपूर्णोऽपि क्षारो न मधुरायते ॥
  • अच्छे मानवों से संबोधित हुआ हो, फ़िर भी दुष्ट मानव साधु नहीं बनता । नदियों के पूर से भरपूर होने के बावजूद सागर मधुर नहीं बनता ।
  • सर्पदुर्जनयो र्मध्ये वरं सर्पो न दुर्जनः ।
  • सर्पो दशति कालेन दुर्जनस्तु पदे ॥
  • सर्प और दुर्जन इन दोनों में दुर्जन से साँप अच्छा क्यों कि सर्प तो समप आने पर हि काटता है, लेकिन दुर्जन तो हर कदम पर काटता है ।
  • दुर्जन प्रथमं वन्दे सज्जनं तदनन्तरम् ।
  • मुखप्रक्षालनात्पूर्व गुदप्रक्षालनं यथा ॥
  • मैं दुर्जन को प्रथम वंदन करता हूँ, और बाद में सज्जन को । मुख धोने से पहले गुद्प्रक्षालन करना चाहिए ।
  • मूर्खशिष्योपदेशेन दुष्टस्त्रीभरणेन च ।
  • असतां संप्रयोगेन पण्डितोप्यवसीदति ॥
  • मूर्ख शिष्य को उपदेश देने से, दुष्ट स्त्री का भरण पोषण करने से, और दुष्टके संयोग से पंडित भी नष्ट होता है ।
  • see also: दया पर संस्कृत श्लोक हिंदी में