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Sanskrit Shlok on Karma: कर्म पर सबसे प्रभावी श्लोक

Sanskrit Shlok on Karma: कर्म पर सबसे प्रभावी श्लोक
संस्कृत शास्त्रों में कर्म का बहुत ही गहन और व्यापक वर्णन मिलता है। हर कार्य का एक परिणाम होता है, और यह सिद्धांत हमें जीवन में संतुलित और विचारशील बनने की प्रेरणा देता है। आइए कुछ प्रमुख श्लोक देखें जो कर्म के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालते हैं:

  1. कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
    मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥

    (भगवद्गीता 2.47)
  2. सहजं कर्म कौन्तेय सदोषमपि न त्यजेत्।
    सर्वारम्भा हि दोषेण धूमेनाग्निरिवावृताः॥

    (भगवद्गीता 18.48)

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  1. अहं करोमीति वृथाभिमानः स्वकर्मसूत्रे ग्रथितो हि लोकः॥
    (स्रोत: प्राचीन संस्कृत ग्रंथ)
  2. कर्मणो ह्यपि बोद्धव्यं च विकर्मणश्च बोद्धव्यं।
    अकर्मणश्च बोद्धव्यं गहना कर्मणो गतिः॥

    (भगवद्गीता 4.17)
  3. यदृच्छालभते दैवं कर्माण्यपि सन्निधौ।
    तस्मात्तद्वशं न साधयेत्॥

    (महाभारत)
  4. कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
    अर्थात् : तुम केवल कर्म कर सकते हो, उसके फलों पर तुम्हारा अधिकार नहीं है।

    (भगवद्गीता 2.47)
  5. Sanskrit Shlok on Karma: कर्म पर सबसे प्रभावी श्लोक
  6. कर्म सुखदुःखहेतु प्रवृत्तं न तु नष्टं न च वदन्ति।
    (उपनिषद)
  7. अस्मिन् कर्मणि मनुष्यस्य केवलं सम्पूर्णः।
    (स्रोत: ऋग्वेद)
  8. कर्म तु साक्षाद्विभूतिः साधनं तु तत्त्वतः।
    (स्रोत: पुराण)
  9. अहंकारमहितं कर्म योगशास्त्रदृष्टि।
    (भगवद्गीता 3.27)
  10. न हि देहानुमेयः कर्मणां वै भेदोऽस्ति।
    (महाभारत)
  11. कर्म परिभाषते, कर्मण्येवाधिकारस्ते।
    (महाभारत)
  12. See Also: भक्तामर स्तोत्र Sanskrit Shlok With Hindi
  13. न चौर्यं न चौर्यं न चौर्यं न चौर्यं।
    यत्कर्म कुरुते तद्भविष्यति, कर्ता यथा भवति।

    (उपदेश शास्त्र)
  14. कर्मण्येवाधिकारस्ते, मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि।
    (भगवद्गीता 2.47)
  15. सुखदुःखाय समवृत्तं कर्म व्यतिरिक्तम्।
    (महाभारत)
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कर्म पर दार्शनिक दृष्टिकोण

कर्म के सिद्धांत को समझने से जीवन के हर कार्य में समर्पण और संतुलन आता है। चाहे सुख हो या दुःख, यह सब हमारे कर्मों का परिणाम है। कर्म को समझने के साथ-साथ, हमें यह भी जानना चाहिए कि कौन-सा कर्म तामसी है (अज्ञान से प्रेरित), राजसी है (अहंकार या इच्छा से प्रेरित), और सात्त्विक कर्म है (निर्लिप्त और फल की इच्छा से रहित)।

Wikipedia’s page on Karma.

Importance of Sanskrit Shlok

ये श्लोक न केवल कर्म के महत्व को दर्शाते हैं, बल्कि यह भी बताते हैं कि जीवन में कार्य करते समय हमें फल की चिंता नहीं करनी चाहिए। कर्म करते समय, ध्यान, उद्देश्य, और मानसिक स्थिति भी महत्वपूर्ण होते हैं।