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भगवद्गीता के कुछ लोकप्रिय श्लोक और उनके हिंदी अर्थ

  • कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥

अर्थ: कर्म करने का ही तुम्हारा अधिकार है, फल की प्राप्ति में कभी नहीं। कर्म के फल की इच्छा से मत करो, और कर्म न करने में भी आसक्त मत होना। (कर्त्तव्य का पालन करना ही आपका अधिकार है, फल की प्राप्ति की चिंता मत करो। कर्म को फल की इच्छा से मत करो और कर्म ना करने में भी लीन मत रहो।)

  • श्रद्धावान्ल्लभते ज्ञानं तत्पर: संयतेन्द्रिय:। ज्ञानं लब्ध्वा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति॥

अर्थ: श्रद्धा रखने वाला, इन्द्रियों को वश में रखने वाला और तत्पर रहने वाला मनुष्य ज्ञान प्राप्त करता है। ज्ञान प्राप्त कर के वह शीघ्र ही परम शांति को प्राप्त हो जाता है। (श्रद्धा रखने वाला और इन्द्रियों को वश में रखने वाला व्यक्ति ज्ञान प्राप्त करता है। ज्ञान प्राप्त कर के वह जल्द ही परम शांति को प्राप्त हो जाता है।)

  • कर्म करना ही धर्म है। उसमें कुशलता हासिल करो। निष्काम कर्म ही योग है, अकुशल कर्म कर्तव्यहीनता है।।

(यह गीता का सार माना जाता है, लेकिन मूल श्लोक संस्कृत में है।)

  • नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावक:। न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः॥

अर्थ: आत्मा को न तो शस्त्र काट सकते हैं, न огонь जला सकता है, न जल गीला कर सकता है और न ही वायु सुखा सकती है। (आत्मा अजर, अमर और सनातन है।)

ये कुछ उदाहरण हैं। भगवद गीता में जीवन के विभिन्न पहलुओं पर श्लोक मिलते हैं, जिन्हें आप अपनी रुचि के अनुसार पढ़ सकते हैं।