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भगवद गीता के 10 महत्वपूर्ण श्लोक और उनके अर्थ – Gita Shlok in Hindi

भगवद गीता के 10 महत्वपूर्ण श्लोक और उनके अर्थ – Gita Shlok in Hindi


परिचय

भगवद गीता हिंदू धर्म का एक प्रमुख ग्रंथ है जो महाभारत के भीष्म पर्व में सम्मिलित है। गीता के श्लोकों में जीवन के सभी पहलुओं को लेकर गहन शिक्षाएं दी गई हैं। “Gita Shlok in Hindi” को जानना हमारे लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि ये श्लोक न केवल हमारे जीवन के हर क्षेत्र में मार्गदर्शन प्रदान करते हैं, बल्कि हमें धर्म, कर्म, और अध्यात्म का सच्चा अर्थ भी समझाते हैं। इस लेख में, हम भगवद गीता के 10 महत्वपूर्ण श्लोकों के बारे में चर्चा करेंगे और उनके हिंदी अर्थ को भी समझेंगे।

1. श्लोक 2.47

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि॥

अर्थ: आपका अधिकार केवल कर्म करने में है, फलों में कभी नहीं। इसलिए कर्म को करते रहो और फल की चिंता न करो। फल की इच्छा से कर्म करना या कर्म न करना दोनों ही अनुचित हैं।

2. श्लोक 2.20

न जायते म्रियते वा कदाचिन्
नायं भूत्वा भविता वा न भूयः।
अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो
न हन्यते हन्यमाने शरीरे॥

अर्थ: आत्मा का न कभी जन्म होता है, न मृत्यु। यह न कभी पैदा होती है और न ही कभी समाप्त होती है। यह अजन्मा, नित्य, शाश्वत और पुरातन है। शरीर नष्ट होने पर भी आत्मा नष्ट नहीं होती।

3. श्लोक 4.7

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥

अर्थ: हे भारत! जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब मैं अपने आप को प्रकट करता हूं।

4. श्लोक 3.21

यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जनः।
स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते॥

अर्थ: जो श्रेष्ठ व्यक्ति आचरण करता है, वही सामान्य लोग अनुसरण करते हैं। वह जो भी मानक स्थापित करता है, समाज उसी का अनुकरण करता है।

5. श्लोक 9.22

अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते।
तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम्॥

अर्थ: जो लोग मुझमें एकनिष्ठ भाव से निरंतर चिंतन करते हुए मेरी आराधना करते हैं, उन नित्य संलग्न भक्तों के योग-क्षेम का मैं स्वयं वहन करता हूँ।

6. श्लोक 6.5

उद्धरेदात्मनाऽऽत्मानं नात्मानमवसादयेत्।
आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः॥

अर्थ: व्यक्ति को अपने आत्मा द्वारा स्वयं को उठाना चाहिए, स्वयं को गिराना नहीं चाहिए, क्योंकि आत्मा ही व्यक्ति का मित्र है और आत्मा ही उसका शत्रु है।

7. श्लोक 18.66

सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।
अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः॥

अर्थ: सभी धर्मों को त्यागकर केवल मेरी शरण में आ जाओ। मैं तुम्हें सभी पापों से मुक्त कर दूंगा, चिंता मत करो।

8. श्लोक 5.22

ये हि संस्पर्शजा भोगा दुःखयोनय एव ते।
आद्यन्तवन्तः कौन्तेय न तेषु रमते बुधः॥

अर्थ: जो भी भोग इंद्रियों के संपर्क से उत्पन्न होते हैं, वे वास्तव में दुःख का कारण हैं। बुद्धिमान व्यक्ति उन भोगों में रमता नहीं है।

9. श्लोक 12.13-14

अद्वेष्टा सर्वभूतानां मैत्रः करुण एव च।
निर्ममो निरहङ्कारः समदुःखसुखः क्षमी॥

अर्थ: जो व्यक्ति किसी से द्वेष नहीं करता, सभी के प्रति मैत्रीपूर्ण और करुणावान होता है, जिसमें ममता और अहंकार नहीं होता, जो सुख-दुःख में सम होता है, वही मेरा भक्त है।

10. श्लोक 15.15

सर्वस्य चाहं हृदि सन्निविष्टो
मत्तः स्मृतिर्ज्ञानमपोहनं च।
वेदैश्च सर्वैरहमेव वेद्यो
वेदान्तकृद्वेदविदेव चाहम्॥

अर्थ: मैं सबके हृदय में स्थित हूँ; मुझसे ही स्मृति, ज्ञान, और उनके विपरीत उत्पन्न होते हैं। वेदों द्वारा मैं ही जानने योग्य हूँ, मैं ही वेदों का रचयिता और वेदों का जानकार हूँ।


निष्कर्ष

भगवद गीता के श्लोक केवल धार्मिक या दार्शनिक दृष्टिकोण तक सीमित नहीं हैं, बल्कि वे हमारे जीवन की कठिन परिस्थितियों में भी मार्गदर्शक की भूमिका निभाते हैं। “Gita Shlok in Hindi” का अध्ययन और उनका अभ्यास हमारे जीवन को सार्थक बना सकता है। हमें इन श्लोकों की महिमा को समझकर अपने जीवन में उतारना चाहिए।