दान पर संस्कृत श्लोक Part4

दान पर संस्कृत श्लोक Part4 Sanskrit Shlok in Hindi on daan
दान पर संस्कृत श्लोक Part4 Sanskrit Shlok in Hindi on daan

Sanskrit Shlok in Hindi on daan

  • रक्षन्ति कृपणाः पाणौ द्रव्यं प्राणमिवात्मनः ।
  • तदेव सन्तः सततमुत्सृजन्ति यथा मलम्
  • कृपण (लोभी) प्राण की तरह द्रव्य का अपने हाथ में रक्षण करता है, पर संत पुरुष उसी द्रव्य को मल की तरह त्याग देते है ।
  • दाता नीचोऽपि सेव्यः स्यान्निष्फलो न महानपि ।
  • जलार्थी वारिधि त्यक्त्वा पश्य कूपं निषेवते ॥
  • दाता नीच हो (छोटा हो) तो भी उसका आश्रय लेना, पर जो फलरहित है, वह बडा हो (महान हो), फिर भी उसका आश्रय नहि लेना । देखो ! प्यासा, सागर का त्याग करके कूए के पास ही जाता है ।
  • हस्तौ दानविवर्जितो श्रुतिपटौ सारश्रुति द्रोहिणौ
  • नेत्रे साधुविलोकनेन रहिते पादौ न तीर्थं गतौ ।
  • अन्यायार्जितवित्तपूर्णमुदरं गर्वेण तुङ्गं शिरः
  • रे जम्बुक ! मुञ्च सहसा नीचस्य निन्द्यं वपुः ॥
  • हे लोमडी (जैसी मनुष्य वृत्ति) ! इस नीच इन्सान का निंद्य शरीर तू छोड दे, (क्यों कि) उसके हाथ दान विवर्जित हैं, कान सार और श्रुति के द्रोही है, आँखों ने अच्छा देखा नहीं, पैर तीर्थ को गये नहीं, पेट अन्याय से प्राप्त धन से भरा हुआ है, (और इसके बावजुद) सिर गर्व से उँचा रहता है !
  • अहो एषां वरं जन्म सर्व प्राण्युपजीवनम् ।
  • धन्या महीरुहा येभ्यो निराशां यान्ति नार्थिनः ॥
  • सब प्राणियों पर उपकार करनेवाले इन (वृक्षों) का जन्म श्रेष्ठ है, वृक्षों को धन्य है कि जिनसे याचक निराश नहि होते ।
दान पर संस्कृत श्लोक
  • उपभोक्तुं न जानाति श्रियं प्राप्यापि मानवः
  • आकण्ठं जलमग्नोऽपि श्वा हि लेढ्येव जिह्वया ।
  • जले तैलं खले गुह्यं पात्रे दानं मनागपि
  • प्राज्ञे शास्त्रं स्वयं याति विस्तारं वस्तुशक्तितः ॥
  • श्री प्राप्त करने के बावजुद भी मनुष्य उसका उपभोग करना नहीं जानता । गरदन तक पानी में डूबे होने के बावजुद भी कुत्ता, पानी को जीभ से चाटता है । (उसके विपरीत) पानी में तेल, दुष्ट व्यक्ति में गुप्त बात, सुपात्र को दिया हुआ थोडा सा भी ज्ञान, प्रज्ञावान के पास शास्त्र – ये सभी स्वयं, वस्तु की शक्ति से ही विस्तृत होते हैं ।
  • धिग् दानम सत्कारं पौरुषं धिक्कलङ्कितम् ।
  • जीवितं मानहीनं धिग् धिक्कन्यां बहुभाषिणीम् ॥
  • बिना सत्कार के दान को धिक्कार है; कलंकित पौरुष को धिक्कार है; मानरहित जीवन को धिक्कार है, और बहुत बोलनेवाली स्त्री को भी धिक्कार है ।
Sanskrit Shlok in Hindi on daan
  • गर्जित्वा बहुदूरमुन्नति-भृतो मुञ्चन्ति मेघा जलम्
  • भद्रस्यापि गजस्य दानसमये सञ्जायतेऽन्तर्मदः ।
  • पुष्पाडम्बर यापनेन ददति प्रायः फलानि द्रुमाः
  • नो छेको नो मदो न कालहरणं दान प्रवृतौ सताम् ॥
  • उन्नत ऐसे बादल, दूर से गर्जना करके पानी देते हैं, भद्र हाथी में भी दान के समय (गण्डस्थल में रस उत्पन्न होते वक्त) मद उत्पन्न होता है, वृक्ष भी पुष्पों का आडंबर दूर करके फल देते हैं; अर्थात् दानप्रवृत्त होने में सज्जनों को दंभ, घमंड या कालहरण होते नहीं ।
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  • उत्तमोऽप्रार्थितो दत्ते मध्यमः प्रार्थितः पुनः ।
  • याचकै र्याच्यमानोऽपि दत्ते न त्वधमाधमः ॥
  • उत्तम (मनुष्य) मागे बगैर देता है, मध्यम मागने के बाद देता है; पर, अधम में अधम तो याचकों के मागने पर भी नहीं देता ।
  • कदर्योपात्त वित्तानां भोगो भाग्यवतां भवेत् ।
  • दन्ता दलति कष्टेन जिह्वा गिलति लीलया ॥
  • कंजूस ने अर्जित किया हुए धन का उपभोग भाग्यशाली को प्राप्त होता है । दांत कष्ट से जो (खुराक) चबाता है, उसे जबान आसानी से निगल जाती है ।
  • सङ्ग्रहैकपरः प्राप समुद्रोऽपि रसातलम् ।
  • दाता तु जलदः पश्य भुवनोपरि गर्जति ॥
  • देखो, संग्रह में मग्न रहनेवाला समंदर रसातल को गया, (किंतु) देनेवाला बादल पृथ्वी पर गर्जता है

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