भक्ति पर संस्कृत श्लोक हिन्दी में

भक्ति पर संस्कृत श्लोक हिन्दी में
sanskrit shlok top website in the world भक्ति पर संस्कृत श्लोक हिन्दी में

भक्ति पर संस्कृत श्लोक हिन्दी में

श्रवणं कीर्तनं विष्णोः स्मरणं पादसेवनम् ।अर्चनं वन्दनं दास्यं सख्यमात्मनिवेदनम् ॥

श्रवण (उ.दा. परीक्षित), कीर्तन (शुकदेव), स्मरण (प्रह्लाद), पादसेवन (लक्ष्मी), अर्चन (पृथुराजा), वंदन (अक्रूर), दास्य (हनुमान), सख्य (अर्जुन), और आत्मनिवेदन (बलि राजा) – इन्हें नवधा भक्ति कहते हैं ।

अत्याहारः प्रवासश्च प्रजल्पो नियमग्रहः ।जनसङ्गश्व लौल्यंच षड्भिः योगो विनश्यति ॥

अति आहार, अधिक श्रम, बहुत बोलना, उपवास, सामान्य लोगों का संग, और स्वादलोलुपता-इनसे योगाभ्यास में बाधा आती है ।

आदित्यं गणनाथं च देवीं रुद्रं च केशवम् ।पञ्चदैवतमिति प्रोक्तं सर्वकार्येषु पूजयेत् ॥

सूर्य, गणपति, देवी, शिव और केशव (विष्णु), इन पाँच देवताओं की हर कार्य में पूजा करनी चाहिए (इसे पंचायतन पूजा कहते हैं) ।

आदित्य मम्बिकां विष्णुं गणनाथं महेश्वरम् ।गृहस्थं पूजयेत् पञ्च भुक्तिमुक्त्यर्थसिद्धये ॥

भुक्ति (भोग) और मुक्ति, दोनों के लिए गृहस्थ ने सूर्य, देवी, विष्णु, गणेश, और शिव, इन पाँचों की पूजा करनी चाहिए ।

विप्राणां दैवतं शम्भुः क्षत्रियाणां च माधवः ।वैश्यानां तु भवेद् ब्रह्मा शूद्राणां गणनायकः ॥

ब्राह्मणों के आराध्य देव शिवजी, क्षत्रियों के श्री कृष्ण, वैश्यों के ब्रह्मा, और शूद्रों के आराध्य श्री गणेश हैं ।

त्रिविधा भवति श्रद्धा देहिनां सा स्वभावजा ।सात्त्विकी राजसी चैव तामसी चेति तां श्रुणु ॥

श्रद्धा स्वभावानुसार सात्त्विक, राजसी, और तामसी, ऐसे तीन प्रकार की होती हैं, वह सुन ।

त्रयी सांख्यं योगः पशुपतिमतं वैष्णवमिति

प्रभिन्ने प्रस्थाने परमिदमदः पथ्यमिति च ।

रुचिनां वैचित्र्याद्ऋजुकुटिलनानापथजुषां

नृणामेको गम्यस्त्वमसि पयसामर्णव इव ॥

त्रयी सांख्य, योग, पाशुपत मत और वैष्णव मत, इत्यादि इन भिन्न, भिन्न प्रस्थानों में से रुचि की विचित्रता के अनुसार कोई एक को श्रेष्ठ और अन्य को कनिष्ठ तप कहेगा ! (पर) सरल, अथवा टेढे मार्ग से जानेवाली सभी नदियाँ, जैसे अंत में समुद्र में जा मिलती है, वैसे हि रुचि वैचित्र्य से भिन्न मार्गो का अनुसरण करनेवाले, सभी का अंतिम स्थान आप ही हैं ।

भक्ति पर संस्कृत श्लोक हिन्दी में

आकाशात् पतितं तोयं यथा गच्छति सागरम् ।
सर्वदेहनमस्कारः केशवं प्रतिगच्छति ॥

आकाश से गिरा हुआ जल, जिस किसी भी प्रकार सागर को हि जा मिलता है; वैसे हि किसी भी रुप की उपासना/नमस्कार, एक हि परमेश्वर को पहुँचती है ।

पुरारौ च मुरारौ च न भेदः पारमार्थिकः ।तथाऽपि मामकी भक्तिः चन्द्रचूडे प्रधावति ॥

जिसका जिस रुप के प्रति आकर्षण होगा, वह उसे ले सकता है । पुरारी या मुरारी में कोई पारमार्थिक भेद नहीं है, कारण सभी रुप एक हि भगवान के हैं ।

किञ्चिदाश्रयसंयोगात् धत्ते शोभामसाध्वापि ।

कान्ताविलोचने न्यस्ते मलीमसमिवाञ्जनम् ॥

बूरी चीज़ भी आश्रय के योग से कुछ शोभा प्राप्त करती है; देखो ! स्त्री की आँख में अंजा हुआ काजल भी अंजन बनता है ।

आस्तिको निःस्पृहो योगी प्रभुकार्ये सदा रतः ।

दक्षो शान्तश्च तेजस्वी प्रभुप्रचारको भवेत् ॥

आस्तिक, निःस्पृही, प्रभु से जुडा हुआ, प्रभुकार्य में रत, दक्ष, शांत और तेजस्वी – ऐसा प्रभुप्रचारक होता है ।

उदाराः सर्व एवैते ज्ञानी त्वात्मैव मे मतम् ।

आस्थितः स हि युक्तात्मा मामेवानुत्तमां गतिम् ॥

सब प्रकार के भक्त श्रेष्ठ हि हैं, फिर भी, उन सब में से ज्ञानी तो साक्षात् मेरा हि स्वरुप है, ऐसा मेरा मत है; क्यों कि वह अति उत्तम गतिरुप मुज में हि सम्यक् रुप से स्थित रह्ता है ।

तेषां ज्ञानी नित्ययुक्त एकभक्तिर्विशिष्यते ।

प्रियो हि ज्ञानिनोऽत्यर्थमहं स च मम प्रियः ॥

मुजे भजनेवाले भक्तों में से, मुज में एकात्मभाव से भजनेवाला नित्ययुक्त ज्ञानी भक्त सब से विशेष है; क्यों कि मुज़े तत्त्व से जाननेवाले ज्ञानी भक्त को मैं अत्यंत प्रिय हूँ, और वह ज्ञानी मुज़े अत्यंत प्रिय है ।

भक्ति पर संस्कृत श्लोक हिन्दी में:

चतुर्विधा भजन्ते मां जनाः सुकृतिनोऽर्जुन

आर्तो जिज्ञासुरर्थार्थी ज्ञानी च भरतर्षभ ॥

हे भरतश्रेष्ठ अर्जुन ! अर्थार्थी (भोगार्थी), आर्त (दुःख से भजनेवाले), जिज्ञासु और ज्ञानी – ऐसे चार प्रकार के भक्त मुज़े भजते हैं ।

केचिद्वदन्ति धनहीनजनो जघन्यः

केचिद्वदन्ति गुणहीनजनो जघन्यः

व्यासो बदत्यखिलवेदपुराणविज्ञो

नारायणस्मरणहीनजनो जघन्यः ॥

कुछ लोग कहते हैं कि धनहीन लोग क्षुद्र हैं; कुछ कहते हैं कि गुणहीन लोग क्षुद्र हैं; पर, सभी वेद-पुराण जाननेवाले श्रीव्यास मुनि कहते हैं कि नारायण का (भगवान का) स्मरण न करनेवाले क्षुद्र हैं ।

आदरेण यथा स्तौति धनवन्तं धनेच्छया ।

तथा चेद्विश्चकर्तारं को न मुच्येत बन्धनात् ॥

धनलालसा से जिस तरह धनवान की स्तुति (इन्सान) करता है, वैसे यदि विश्वकर्ता (भगवान) की करे, तो कौन बंधन मुक्त न हो ?

कृतान्तस्य दूती जरा कर्णमूले

समागत्य वक्तीति लोकाः शृणुध्वम् ।

परस्त्रीपरद्रव्यवाञ्छां त्यजध्वम्

भजध्वं रमानाथपादारविन्दम् ॥

Other श्लोक : ऐसे देशों में नहीं रहना चाहिए :

यम की दूती जरा (बुढापा) कान के करीब आकर बताती है कि “हे लोगों ! सुनो । परायी स्त्री और पराया धन लेने का खयाल छोड दो, और रमानाथ (भगवान) के चरणों में ध्यान धरो

श्रवणं कीर्तनं ध्यानं हरेरकर्मणः ।

जन्मकर्म गुणानां च तदर्थेऽखिलचेष्टितम् ॥

भगवान की लीलाएँ अद्भुत हैं । उनके जन्म, कर्म, और गुण दिव्य हैं । उन्हीं का श्रवण, कीर्तन, और ध्यान करना चाहिए । सब भगवान के लिए करना सीखना चाहिए ।

श्रवणं कीर्तनं विष्णोः स्मरणं पादसेवनम् ।

अर्चनं वन्दनं दास्यं सख्यमात्मनिवेदनम् ॥

श्रवण, कीर्तन, स्मरण, पादसेवन, अर्चन, वन्दन, दास्य, सख्य, और आत्मनिवेदन – ये नौ भक्ति के सोपान हैं ।

follow us on facebook and twitter