ज्ञान पर संस्कृत श्लोक Gyan shlok in hindi

ज्ञान पर संस्कृत श्लोक Gyan shlok in hindi
ज्ञान पर संस्कृत श्लोक Gyan shlok in hindi

ज्ञान पर संस्कृत श्लोक Gyan shlok in hindi

  • अल्पाक्षरमसंदिग्धं सारवद्विश्वतो मुखम् ।
  • अस्तोभमनवद्यं च सूत्रं सूत्रविदो विदुः ॥
  • अल्पाक्षरता, असंदिग्धता, साररुप, सामान्य सिद्धांत, निरर्थक शब्द का अभाव, और दोषरहितत्व – ये छे ‘सूत्र’ के लक्षण कहे गये हैं ।
  • शिक्षा कल्पो व्याकरणं निरुक्तं छन्दसामिति ।
  • ज्योतिषामयनं चैव षडंगो वेद उच्यते ॥
  • शिक्षा (उच्चार शास्त्र), कल्पसूत्र, व्याकरण (शब्द/व्युत्पत्ति शास्त्र), निरुक्त (कोश), छन्द (वृत्त), और ज्योतिष (समय/खगोल शास्त्र) – ये छे वेदांग कहे गये हैं ।
  • सर्गश्च प्रतिसर्गश्च वंशो मन्वन्तराणि च ।
  • वंशानुचरितं चैव पुराणं पञ्चलक्षणम् ॥
  • सर्ग (उत्पत्ति), प्रतिसर्ग (लय), पुनरुत्पत्ति, मन्वन्तर (अलग मनु से शुरु होनेवाला काल), और वंशानुचरित (कथाएँ) ये पुराण के पाँच लक्षण हैं ।
  • Ashtanga yoga-Yoga Sutras of Patanjali
  • Gayatri Mantra Supreme mantra of the universe from Vedas
  • विषययोगानन्दौ द्वावद्वैतानन्द एव च ।
  • विदेहानन्दो विख्यातो ब्रह्मानन्दश्च पञ्चमः ॥
  • विषयानंद, योगानंद, अद्वैतानंद, विदेहानंद, और ब्रह्मानंद, ऐसे पाँच प्रकार के आनंद हैं ।
  • ग्रन्थार्थस्य परिज्ञानं तात्पर्यार्थ निरुपणम् ।
  • आद्यन्तमध्य व्याख्यान शक्तिः शास्त्र विदो गुणाः ॥
  • ग्रंथ का संपूर्ण ज्ञान, तात्पर्य निरुपण करने की समज, और ग्रंथ के किसी भी भाग पर विवेचन करने की शक्ति – ये शास्त्रविद् के गुण है ।
ज्ञान श्लोक Gyan shlok in hindi
  • ज्ञानं तु द्विविधं प्रोक्तं शाब्दिकं प्रथमं स्मृतम् ।
  • अनुभवाख्यं द्वितीयं तुं ज्ञानं तदुर्लभं नृप ॥
  • हे राजा ! ज्ञान दो प्रकार के होते हैं; एक तो स्मृतिजन्य शाब्दिक ज्ञान, और दूसरा अनुभवजन्य ज्ञान जो अत्यंत दुर्लभ है ।
  • बालः पश्यति लिङ्गं मध्यम बुद्धि र्विचारयति वृत्तम् ।
  • आगम तत्त्वं तु बुधः परीक्षते सर्वयत्नेन ॥
  • जो बाह्य चिह्नों को देखता है, वह बालबुद्धि का है; जो वृत्ति का विचार करता है, वह मध्यम बुद्धि का है; और जो सर्वयत्न से आगम तत्त्व की परीक्षा करता है, वह बुध/ज्ञानी है ।
  • न स्वर्गो वाऽपवर्गो वा नैवात्मा पारलौकिकः । (gyan shlok)
  • नैव वर्णाश्रमादीनां क्रिया च फलदायिका ॥
  • स्वर्ग, मोक्ष, आत्मा, परलोक – ये कुछ भी नहीं है । वर्णाश्रम, या कर्मफल इत्यादि भी सत्य नहीं । (नास्तिक मत)
  • पञ्चभूतात्मकं वस्तु प्रत्यक्षं च प्रमाणकम् ।
  • नास्तिकानां मते नान्यदात्माऽमुत्र शुभाशुभम् ॥
  • प्रत्यक्ष प्रमाण हि प्रमाण है; पञ्चभूतात्मक देह और सृष्टि हि आत्मा है, अन्य नहीं । नास्तिकों के मतानुसार शुभ-अशुभ भुगतना पडता है, ऐसा भी नहीं ।
  • लोकायता वदन्त्येवं नास्ति देवो न निवृत्तिः ।(gyan shlok)
  • धर्माधर्मौ न विद्यते न फलं पुण्यपापयोः ॥
  • लोकायत (नास्तिक वर्ग) लोग ऐसा कहते हैं कि देव या मुक्ति जैसा कुछ नहीं है; धर्म-अधर्म नहीं है; पाप-पुण्य का फल होता है, ऐसा भी मानने की आवश्यकता नहीं ।
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