गुरु पर संस्कृत श्लोक हिंदी में part2

गुरु पर संस्कृत श्लोक हिंदी में part2:

  • पूर्णे तटाके तृषितः सदैव
  • भूतेऽपि गेहे क्षुधितः स मूढः ।
  • कल्पद्रुमे सत्यपि वै दरिद्रः
  • गुर्वादियोगेऽपि हि यः प्रमादी ॥
  • जो इन्सान गुरु मिलने के बावजुद प्रमादी रहे, वह मूर्ख पानी से भरे हुए सरोवर के पास होते हुए भी प्यासा, घर में अनाज होते हुए भी भूखा, और कल्पवृक्ष के पास रहते हुए भी दरिद्र है ।
  • वेषं न विश्वसेत् प्राज्ञः वेषो दोषाय जायते ।
  • रावणो भिक्षुरुपेण जहार जनकात्मजाम् ॥
  • (केवल बाह्य) वेष पर विश्वास नहि करना चाहिए; वेष दोषयुक्त (झूठा) हो सकता है । रावण ने भिक्षु का रुप लेकर हि सीता का हरण किया था ।
  • त्यजेत् धर्मं दयाहीनं विद्याहीनं गुरुं त्यजेत् ।
  • त्यजेत् क्रोधमुखीं भार्यां निःस्नेहान् बान्धवांस्त्यजेत् ॥
  • इन्सान ने दयाहीन धर्म का, विद्याहीन गुरु का, क्रोधी पत्नी का, और स्नेहरहित संबंधीयों का त्याग करना चाहिए ।
  • नीचं शय्यासनं चास्य सर्वदा गुरुसंनिधौ ।
  • गुरोस्तु चक्षु र्विषये न यथेष्टासनो भवेत् ॥
  • गुरु की उपस्थिति में (शिष्य का) आसन गुरु से नीचे होना चाहिए; गुरु जब हाजर हो, तब शिष्य ने जैसे-वैसे नहि बैठना चाहिए ।
  • यः समः सर्वभूतेषु विरागी गतमत्सरः ।
  • जितेन्द्रियः शुचिर्दक्षः सदाचार समन्वितः ॥
  • गुरु सब प्राणियों के प्रति वीतराग और मत्सर से रहित होते हैं । वे जीतेन्द्रिय, पवित्र, दक्ष और सदाचारी होते हैं ।
  • योगीन्द्रः श्रुतिपारगः समरसाम्भोधौ निमग्नः सदा
  • शान्ति क्षान्ति नितान्त दान्ति निपुणो धर्मैक निष्ठारतः ।
  • शिष्याणां शुभचित्त शुद्धिजनकः संसर्ग मात्रेण यः
  • सोऽन्यांस्तारयति स्वयं च तरति स्वार्थं विना सद्गुरुः ॥
  • योगीयों में श्रेष्ठ, श्रुतियों को समजा हुआ, (संसार/सृष्टि) सागर मं समरस हुआ, शांति-क्षमा-दमन ऐसे गुणोंवाला, धर्म में एकनिष्ठ, अपने संसर्ग से शिष्यों के चित्त को शुद्ध करनेवाले, ऐसे सद्गुरु, बिना स्वार्थ अन्य को तारते हैं, और स्वयं भी तर जाते हैं ।
गुरु पर संस्कृत श्लोक हिंदी में part2
  • एकमप्यक्षरं यस्तु गुरुः शिष्ये निवेदयेत् ।
  • पृथिव्यां नास्ति तद् द्रव्यं यद्दत्वा ह्यनृणी भवेत् ॥
  • गुरु शिष्य को जो एखाद अक्षर भी कहे, तो उसके बदले में पृथ्वी का ऐसा कोई धन नहि, जो देकर गुरु के ऋण में से मुक्त हो सकें ।
  • अज्ञान तिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जन शलाकया ।
  • चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः ॥
  • जिसने ज्ञानांजनरुप शलाका से, अज्ञानरुप अंधकार से अंध हुए लोगों की आँखें खोली, उन गुरु को नमस्कार ।
  • विद्वत्त्वं दक्षता शीलं सङ्कान्तिरनुशीलनम् ।
  • शिक्षकस्य गुणाः सप्त सचेतस्त्वं प्रसन्नता ॥
  • विद्वत्व, दक्षता, शील, संक्रांति, अनुशीलन, सचेतत्व, और प्रसन्नता – ये सात शिक्षक के गुण हैं ।
  • गुकारस्त्वन्धकारस्तु रुकार स्तेज उच्यते ।
  • अन्धकार निरोधत्वात् गुरुरित्यभिधीयते ॥
  • ‘गु’कार याने अंधकार, और ‘रु’कार याने तेज; जो अंधकार का (ज्ञाना का प्रकाश देकर) निरोध करता है, वही गुरु कहा जाता है ।
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1 Response

  1. October 19, 2020

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