दुर्जन पर संस्कृत श्लोक हिंदी में Part3 Top Sanskrit Shlok
- मृगमीनसज्जनानां तृणजलसंतोषवृत्तीनाम् ।
- लुब्धकधीवरपिशुनाः निष्कारणमेव वैरिणो जगति ॥
- घास, पानी ओर संतोष से जीनेवाले हिरण, मछलियाँ सज्जन के अनुक्रम से पारधी, मच्छीमार ओर दुष्ट निष्कारण बैरी होते हैं ।
- अहो दुर्जनसंसर्गात् मानहानिः पदे ।
- पावको लोहसंगेन मुद्ररैरभिहन्यते ॥
- दुर्जन के संसर्ग से कदम पर हानि होती है । लोहे के संसर्ग से अग्नि को भी हथौडे से पीटना पडता है ।
- अहो खलुभुंजगस्य विपरीतो वधक्रमः ।
- कर्णे लगति एकस्य प्राणैरन्यो विमुच्यते ॥
- अरे ! दुष्ट मानव रुपी सर्प की वध करने की रीत हि अलग है; यह तो एक के कान को स्पर्श करें ओर जान दूसरे की जाए (याने कि एक के कान में कुछ कहे ओर नुकसान दुसरे को हो) !
- अतिरमणीये कव्येऽपि पिशुनो दूषणमन्वेषयति ।
- अतिरमणीये वपुषि व्रणमिव मक्षिकानिकरः ॥
- जैसे सुंदर शरीर में भी मक्खीयों का समूह व्रण को ढूँढता है, वैसे रमणीय काव्य में भी दुष्ट दोष ढूँढता है ।
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- कृतवैरे न विश्र्वासः कार्यस्त्विह सुहध्यति ।
- छन्नं संतिष्ठते वैरं गूठोऽग्रिरिव दारुषु ॥
- जिसके साथ बैर हुआ हो एसे सुह्र्द पर भी भरोसा नहीं करना चाहिए । जैसे लकडे में अग्नि छूपा है वैसे उनमें बैर छूपा होता है ।
- न दुर्जनः सज्जनतामुपैति
- बहु प्रकारैरपि सेव्यमानः ।
- अत्यंतसिक्तः पयसा धृतेन
- न निम्बवृक्षः मधुतामुपैति ॥
- विविध प्रकार से सेवा करने के बावजुद दुर्जन सज्जन नहीं बनता । दूध ओर घी में अत्यंत डूबोया हुआ निंबवृक्ष मधुर नहीं बनता ।
- तुष्यन्ति भोजनैर्विप्राः मयूरा धनगर्जितैः ।
- साधवः परकल्याणैः खलाः परविपत्तिभिः ॥
- ब्राह्मण भोजन से, मोर मेघगर्जना से, सज्जन परकल्याण से ओर दुष्ट परविपत्ति से खुश होता है ।
- मृगमदकर्पूरागरुचन्दनगन्धाधिवासितो लशुनः ।
- न त्यजति गंधमशुभं प्रकृतिमिव सहोत्थितां नीचः ॥
- कस्तूरी, कपूर, अगरु और सुवास से सुवासित किया हुआ लसून अपनी दुर्गंध नहीं छोडता । वैसे हि दुष्ट अपनी
- जन्मजात नीच व्रृत्तिओं का त्याग नहीं करता ।
- यथा गजपतिः श्रान्तः छायार्थी वृक्षमाश्रितः ।
- विश्रम्य तं द्रुमं हन्ति तथा नीचः स्वमाश्रयम् ॥
- जैसे थका हुआ हाथी छांव लेने वृक्ष का आश्रय लेता है, और विश्राम के बाद वृक्षका नाश करता है वैसे नीच मानव खुदको आश्रय देनेवाले का नाश करता है ।
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- पाषाणो भिध्यते टंके वज्रः वज्रेण भिध्यते ।
- सर्पोऽपि भिध्यते मन्त्रै र्दुष्टात्मा नैव भिध्यते ॥
- पाषाण टंक से, वज्र वज्रसे, साप मंत्रसे भेदा जाता है, लेकिन दुष्ट मानव किसी से भी नहीं भेदा जाता ।