दान पर संस्कृत श्लोक Part 2 Sanskrit Shlok in Hindi on daan

दान पर संस्कृत श्लोक Part 2 Sanskrit Shlok in Hindi on daan

  • पिपीलिकार्जितं धान्यं मक्षिकासंचितं मधु ।
  • लुब्धेनोपार्जितं द्रव्यं समूलं च विनश्यति ॥

चींटी ने इकट्ठा किया हुआ धान्य, मधुमक्खी ने इकट्ठा किया हुआ मधु, लोभी ने इकट्ठा किया हुआ धन, इन सभी का मूल से ही नाश होता है ।

  • अदेशकाले यद्दानमपात्रेभ्यश्च दीयते ।
  • असत्कृतमवज्ञातं तत्तामसमुदाहृतम् ॥

जो दान बिना सत्कार, तिरष्कारपूर्वक, अयोग्य देश-काल में या कुपात्र को दिया जाता है, वह तामस दान कहलाता है ।

  • यत्तु प्रत्युपकारार्थं फलमुद्दिश्य वा पुनः ।
  • दीयते च परिक्लिष्टं तद्दानं राजसं स्मृतम् ॥

जो दान क्लेश से, प्रत्युपकार की भावना से, या फल मिलने की अपेक्षा से दिया जाता है, वह राजस दान कहा गया है ।

  • दातव्यमिति यद्दानं दीयतेऽनुपकारिणे ।
  • देशे काले च पात्रे च तद्दानं सात्त्विकं स्मृतम् ॥

“दान देना कर्तव्य है” ऐसी भावना से जो दान देश, काल, और योग्य पात्र देखकर, प्रत्युपकार की भावना रखे बिगैर दिया जाता है वह सात्त्विक दान कहा गया है ।

Sanskrit shlok
  • आत्मार्थं जीवलोकेस्मिन् को न जीवति मानवः ।
  • परं परोपकारार्थं यो जीवति स जीवति ॥

इस दुनिया में अपने लिए कौन मानव नहीं जीता (सब जीते हैं) ? लेकिन परोपकार के लिए जीए उसे जीया कहते हैं । विद्या पर संस्कृत श्लोक हिन्दी मेंClick for अभय पर संस्कृत श्लोक हिन्दी में

  • यस्मिन् जीवति जीवन्ति बहवः स तु जीवति ।
  • काकोऽपि किं न कुरुते चंच्वा स्वोदरपूरणम् ॥

जिसके जीने से कई लोग जीते हैं, वह जीया कहलाता है, अन्यथा क्या कौआ भी चोंच से अपना पेट नहीं भरता ? ?

  • यस्य जीवन्ति धर्मेण पुत्रा मित्राणि बान्धवाः ।
  • सफलं जीवितं तस्य नात्मार्थे को हि जीवति ॥

जिसके सत्कर्म से पुत्र, मित्र और बंधु जीते हैं उसका जीवन सफल है अन्यथा अपने लिए कौन नहीं जीता “सब जीते हैं” ।

  • दानोपभोगरहिता दिवसा यस्य यान्ति वै ।
  • स लोहकारभस्रेव श्वसन्नपि न जीवति ॥

जिसके दिन दान का उपभोग लिये बिना पसार होता है, वह साँस लेते हुए भी लोहार के धमन की भाँति जीवंत नहीं है ।

  • वाणी सरस्वती यस्य भार्या पुत्रवती सती ।
  • लक्ष्मीः दानवती यस्य सफलं तस्य जीवितम् ॥

जिसकी वाणी रसवती हो, पत्नी पुत्रवती हो, और लक्ष्मी दानवती हो उसका जीवन सफल है ।

  • दानं भोगो नाशस्तिस्त्रो गतयो भवन्ति वित्तस्य ।
  • यो न ददाति न भुङ्क्ते तस्य तृतीया गतिर्भवति ॥

दान, भोग, व नाश – ये वित्त की तीन गतियाँ हैं । जो देता नहीं है, और भुगतता भी नहीं है, उसके वित्त की तीसरी गति अर्थात् नाश होता है ।

दान पर संस्कृत श्लोक Part 3 Sanskrit Shlok in Hindi On Daan

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