(अर्थ: अगर तुम्हारे लिए वीर्य और ब्रह्मचर्य का पालन कठिन है, तो वीर्य को त्यागो और अपनी ताकत को बनाओ।)
यो ब्रह्मचर्यं चरति वीर्यायत्नात्मा चारयति तपस्वि च। स चायं लोके परमोऽपवादो यः क्रियाप्रवृत्तः प्राप्नोति लोकान्।।
(अर्थ: जो व्यक्ति ब्रह्मचर्य का पालन करता है, वीर्य को सुरक्षित रूप से उपयोग करता है, और तपस्या करता है, वह इस लोक में अवमानित नहीं होता और अगले जीवन में भी उच्च लोक प्राप्त करता है।)
नियमेन यदि सर्वत्र ब्रह्मचारी विजीविषेत्। अशीष्य यो न कुर्यात्स यदा व्याघ्रः प्रपत्यते।। (अर्थ: यदि कोई व्यक्ति सर्वथा ब्रह्मचर्य का पालन करे और दूसरों को न दुखाए, तो वह व्याघ्र की तरह जीत लेता है।)
यो वीर्यसमुद्भवे चाविरतानि ब्रह्मचारिणि समर्पयेत्।
(अर्थ: जो व्यक्ति अपने वीर्य को ब्रह्मचर्य की ओर प्रवृत्त करता है, वह ब्रह्मचारिणियों के लिए अर्पण करता है।)
(अर्थ: ब्रह्मचर्य, तप, सत्य, और दान – ये चारों क्रियाएँ गरीब के धर्म का हिस्सा होती हैं। इसलिए, दरिद्र धर्म को ब्रह्मचर्य कहा जाता है।)
ब्रह्मचार्यं योऽविचिन्त्यमानिमधीयानोऽप्यविचाल्यमानिः। योऽपि विचाल्योऽपि स एव ब्रह्मचारी यः कामकारिणमविते व्रजति।।
(अर्थ: ब्रह्मचर्य का पालन करने वाला व्यक्ति अपने विचारों को न भटकने देता है, और वायुमंडल में भी अस्पष्ट रहता है। वह कामकारी को भी ब्रह्मचर्य में प्रवृत्त कर देता है।)
वीर्यं च प्रसवं चैव यद्यप्यन्नपि पश्यति। अन्यथा क्रीडते सूत्रे तस्मात्सुत्रं न भिन्नयेत्।।
(अर्थ: यदि कोई व्यक्ति वीर्य और प्रसव का संरक्षण नहीं करता है, तो वह सूत्र को न खींचे।)
(अर्थ: जब आत्मा ब्रह्मचर्य का ध्यान करती है, तो व्यक्ति ब्रह्मचारी बनता है।)
ब्रह्मचर्यमचरति यस्यास्य प्राणा बलानि च। तं विद्याभ्यास्यं ब्रह्मचार्यं विद्यादधीतायिनः।। (अर्थ: जिसका ब्रह्मचर्य का पालन होता है, उसके प्राण और बल बढ़ते हैं। विद्यार्थी को विद्या और अभ्यास का ध्यान रखना चाहिए।)
ब्रह्मचारी यदा योगी विशां पुरुषशासनम्। अनन्यध्यायिनां चिन्ता मन्यते यस्य मन्यते।। (अर्थ: जब एक ब्रह्मचारी योगी विश्व के पुरुषों की शासन करता है और उनका मन अनन्य ध्यान में लगा रहता है, तो वहीं उसका मनन होता है।