कर्म पर संस्कृत श्लोक

कर्म पर संस्कृत श्लोक
कर्म पर संस्कृत श्लोक

कर्म पर संस्कृत श्लोक Sanskrit Shlokas for Karma with Hindi Meaning

  • कर्म पर संस्कृत श्लोक Sanskrit Shlokas for Karma with Hindi Meaning
  • ब्रह्मण्याधाय कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा करोति यः ।
  • लिप्यते न स पापेन पद्मपत्रमिवाम्भसा ॥
  • जो आसक्तिरहित और ब्रह्मार्पण वृत्ति से कर्म करते हैं, वे पानी से अलिप्त रहनेवाले कमल की तरह पाप से अलिप्त रहते हैं ।
  • यज्ञदानतपःकर्म न त्याज्यं कार्यमेव तत् ।
  • यज्ञो दानं तपश्चैव पावनानि मनीषिणाम् ॥
  • यज्ञ, दान और तपरुपी कर्म त्याग करने योग्य नहि है, बल्कि ये तो अवश्य करने चाहिए; क्यों कि यज्ञ, दान, और तप – ये तीनों कर्म बुद्धिमान मनुष्य को पावन करनेवाले हैं ।
  • नास्तिकः पिशुनश्चैव कृतघ्नो दीर्घदोषकः ।
  • चत्वारः कर्मचाण्डाला जन्मतश्चापि पञ्चमः ॥
  • नास्तिक, निर्दय, कृतघ्नी, दीर्घद्वेषी, और अधर्मजन्य संतति – ये पाँचों कर्मचांडाल हैं ।
  • वागुच्चारोत्सवं मात्रं तत्क्रियां कर्तुमक्षमाः ।
  • कलौ वेदान्तिनो फाल्गुने बालका इव ॥
  • लोग वाणी बोलने का आनंद उठाते हैं, पर उस मुताबिक क्रिया करने में समर्थ नहीं होते । कलियुग के वेदांती, फाल्गुन मास के बच्चों जैसे लगते हैं ।
कर्म पर संस्कृत श्लोक Sanskrit Shlokas for Karma with Hindi Meaning
  • कर्मण्यकर्म यः पश्येदकर्मणि च कर्म यः ।
  • स बुद्धिमान्मनुष्येषु स युक्तः कृत्स्नकर्मकृत् ॥
  • जो मनुष्य कर्म में अकर्म देखते हैं, और कर्म में अकर्म को देखता हैं, वह इन्सान सभी मनुष्यों में बुद्धिमान है; एवं वह योगी सम्यक् कर्म करनेवाला है ।
  • दाने शक्तिः श्रुतौ भक्तिः गुरूपास्तिः गुणे रतिः ।
  • दमे मतिः दयावृत्तिः षडमी सुकृताङ्कुराः ॥
  • दातृत्वशक्ति, वेदों में भक्ति, गुरुसेवा, गुणों की आसक्ति, (भोग में नहि पर) इंद्रियसंयम की मति, और दयावृत्ति – इन छे बातों में सत्कार्य के अंकुर हैं ।
  • कर्मणो ह्यपि बोद्धव्यं च विकर्मणः ।
  • अकर्मणश्च बोद्धव्यं गहना कर्मणो गतिः ॥
  • कर्म का स्वरुप जानना चाहिए, अकर्म का और विकर्म का स्वरुप भी जानना चाहिए; क्यों कि कर्म की गति अति गहन है ।
  • सुखस्य दुःखस्य न कोऽपि दाता परो ददातीति कुबुद्धिरेषा ।
  • अहं करोमीति वृथाभिमानः स्वकर्मसूत्रे ग्रथितो हि लोकः ॥
  • (जीवन में) सुख-दुःख किसी अन्य के दिये नहीं होते; कोई दूसरा मुजे सुख-दुःख देता है यह मानना व्यर्थ है । ‘मुजसे होता है’ यह मानना भी मिथ्याभिमान है । समस्त जीवन और सृष्टि स्वकर्म के सूत्र में बंधे हुए हैं ।
कर्म पर संस्कृत श्लोक Sanskrit Shlokas for Karma with Hindi Meaning
  • सहजं कर्म कौन्तेय सदोषमपि न त्यजेत् ।
  • सर्वारम्भा हि दोषेण धूमेनाग्निरिवावृताः ॥
  • हे कौन्तेय ! दोषयुक्त होते हुए भी सहज कर्म का त्याग नहीं करना चाहिए; क्यों कि जैसे अग्नि धूंएँ से आवृत्त होता है वैसे हि हर कर्म किसी न किसी दोष से युक्त होता है ।
  • वैद्याः वदन्ति कफपित्तमरुद्विकारान् ज्योतिर्विदो ग्रहगतिं परिवर्तयन्ति ।
  • भूताभिषंग इति भूतविदो वदन्ति प्रारब्धकर्म बलवन्मुनयोः वदन्ति ॥
  • (पीडा होने पर) वैद्य कहते हैं वह कफ, पित्त और वायु का विकार है; ज्योतिषी कहते हैं वह ग्रहों की पीडा है; भूवा (बाबा) कहता है भूत का संचार हुआ है, पर ऋषि-मुनि कहते हैं प्रारब्ध कर्म बलवान है (और उसी का यह फल है) ।

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  • अनुबन्धं क्षयं हिंसामनवेक्ष्य च पौरुषम् ।
  • मोहादारभ्यते कर्म यत्तत्तामसमुच्यते ॥
  • जो कर्म परिणाम, हानि, हिंसा, और सामर्थ्य को ध्यान में लिये बगैर, केवल अज्ञान की वजह से किया जाता है, वह तामसी कहा गया है ।
  • यत्तु कामेप्सुना कर्म साहङ्कारेण वा पुनः ।
  • क्रियते बहुलायासं तद्राजसमुदाहृतम् ॥
  • जो कर्म बहुत परिश्रम उठाकर किया जाता है, और उपर से भोगेच्छा से या अहंकार से किया जाता है, वह कर्म राजसी कहा गया है ।
कर्म पर संस्कृत श्लोक Sanskrit Shlokas for Karma with Hindi Meaning
  • अपहाय निजं कर्म कृष्णकृष्णोति वादिनः ।
  • ते हरेर्द्वेषिनः पापाः धर्मार्थ जन्म यध्धरेः ॥
  • जो लोग अपना कर्म छोडकर केवल कृष्ण बोलते रहते हैं, वे हरि के द्वेषी हैं ।
  • केचित् कुर्वन्ति कर्माणि कामरहतचेतसः ।
  • त्यजन्तः प्रकृयिदैवीर्यथाहं लोकसंग्रहम् ॥
  • जगत में विरल हि लोग ऐसे होते हैं, जो भगवान की माया से निर्मित विषयसंबंधी वासनाओं का त्याग करके मेरे समान केवल लोकसंग्रह के लिए कर्म करते रहेते हैं ।
  • नियतं सङ्गरहितमरागद्वेषतः कृतम् ।
  • अफलप्रेप्सुना कर्म यत्तत्सात्त्विकमुच्यते ॥
  • जो कर्म शास्त्रविधि से नियत किया हो, कर्तापन के अभिमान से रहित किया गया हो, और फलेच्छा बिना, राग-द्वेष रहित किया गया हो – वह कर्म सात्त्विक कहा गया है ।
  • एकचक्रो  रथो  यन्ता  विकलो  विषमा  हयाः |
    आक्रमत्येव तेजस्वी तथाप्यर्को  नभस्थलम्  ||

                         
  • भावार्थ –   सूर्य के  रथ  में यद्दपि एक ही पहिया है , सारथी
    अरुण भी विकलांग है , और रथ को खींचने वाले घोडों की 
    संख्या भी विषम (सात) है , फिर भी सूर्य आकाश में सतत
    भ्रमण कर अपने तेज से समस्त विश्व को जीवनदायी प्रकाश
    प्रदान करता है |

    पुराणों में वर्णित उपर्युक्त को एक रूपक  के रूप में
    प्रयुक्त कर यह प्रतिपादित किया गया है कि तेजस्वी व्यक्ति
    अनेक विघ्न बाधाओं के होते हुए भी अपने कर्तव्य पर अडिग
    रहते हैं

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