योग पर संस्कृत श्लोक

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योग पर संस्कृत श्लोक

योग पर संस्कृत श्लोक

  • योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः (Yogaścittavṛttinirodhaḥ)
  • अर्थ: योग चित्त की वृत्तियों का निरोध है।
  • भावार्थ: योग का अर्थ है चित्त की अशांत वृत्तियों को शांत करना। जब चित्त शांत होता है, तो हम आत्मा का अनुभव कर सकते हैं।
  • योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय । सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते ॥ (Yogasthaḥ kuru karmāṇi saṅgaṃ tyaktvā dhanañjaya । siddhyasiddhyoḥ samo bhūtvā samatvaṃ yoga ucyate ॥)
  • अर्थ: हे अर्जुन, कर्मयोग में स्थित होकर, आसक्ति को त्यागकर कर्म कर। सफलता और असफलता में समान भाव रखकर कर्म करना योग कहलाता है।
  • भावार्थ: कर्म करते समय हमें फल की चिंता नहीं करनी चाहिए। हमें अपना कर्तव्य निष्ठा से करना चाहिए। सफलता और असफलता दोनों ही जीवन का हिस्सा हैं। हमें दोनों को समान भाव से स्वीकार करना चाहिए।
  • मनःप्रशमनोपायो योग इत्यभिधीयते॥ (Manaḥpraśamanopayo yoga ityabhidhīyate)
  • अर्थ: मन को शांत करने का उपाय योग कहलाता है।
  • भावार्थ: योग का मुख्य उद्देश्य मन को शांत करना है। जब मन शांत होता है, तो हम जीवन में सुख और शांति का अनुभव कर सकते हैं।
  • अन्य संस्कृत श्लोक:
  • तत्र स्थितो योगी ब्रह्म निर्वाणमृच्छति। (Tatra sthito yogī brahma nirvāṇamṛcchati)
  • अर्थ: योगी योग में स्थित होकर ब्रह्म निर्वाण को प्राप्त करता है।
  • यथा दीपो निवाते स्थिरो नृत्यति सोऽपि मे। (Yathā dīpo nivāte sthiro nṛtyati soऽpi me)
  • अर्थ: जैसे दीपक हवा में स्थिर रहता है, वैसे ही मेरा मन भी स्थिर रहता है।
  • ॐ सह नाववतु । सह नौ भुनक्तु । सह वीर्यं करवावहै । तेजस्वि नावधीतमस्तु । मा विद्विषावहै । ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः । (Om saha nāvavatu । saha nau bhunaktu । saha vīryaṃ karavāvahai । tejasvi nāvadhītamastu । mā vidviṣāvahai । om śāntiḥ śāntiḥ śāntiḥ)
  • अर्थ: ॐ हमें सुख दे। हमें ज्ञान दे। हमें शक्ति दे। हमें सफलता दे। हमें द्वेष से दूर रखे। ॐ शांति शांति शांति।

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