Skip to content

Sanskrit Shlok on life

Sanskrit Shlok on life

हे लक्ष्मण ! यह स्वर्णपुरी लंका मुझे अच्छी नहीं लगती । माँ और मातृभूमि स्वर्ग से भी बडे होते है ।



यस्मिन् देशे न सन्मानो न प्रीति र्न च बान्धवाः ।
न च विद्यागमः कश्चित् न तत्र दिवसं वसेत् ॥

जिस देश में सन्मान नहीं, प्रीति नहीं, संबंधी नहीं, और जहाँ विद्या मिलना संभव न हो,

वहाँ एक दिन भी नहीं ठहरना चाहिए ।

visit :भक्ति पर संस्कृत श्लोक हिन्दी में
visit: गृहस्थी पर संस्कृत श्लोक हिंदी में
मर्कटस्य सुरापानं तत्र वृश्चिकदंशनम् ।
तन्मध्ये भूतसंचारो यद्वा तद्वा भविष्यति ॥

बंदर ने शराब पी, उसे बिच्छु ने काटा, उपर से उस में भूत प्रविष्ट हुआ, फिर सर्वथा अनिष्ट ही होगा (होने में क्या शेष बचेगा ?) ।

Visit our facebook page: click

Visit english website: Trends.sanskritshlok.com

Comments are closed.