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भगवद गीता के 50 संक्षिप्त श्लोक और उनके हिंदी अर्थ

भगवद गीता के 50 संक्षिप्त श्लोक और उनके हिंदी अर्थ

  1. धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः।
    मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत सञ्जय॥

    अर्थ: धर्मभूमि कुरुक्षेत्र में एकत्रित होकर, युद्ध के लिए तत्पर कौरव और पाण्डव ने क्या किया, हे संजय?
  2. नासतो विद्यते भावो नाभावो विद्यते सतः।
    उभयोरपि दृष्टान्तः त्वनयोस्तत्त्वदर्शिभिः॥

    अर्थ: जो असत्य है, उसकी कोई अस्तित्व नहीं; और जो सत्य है, उसका कभी अभाव नहीं होता। इस सिद्धांत को ज्ञानी जानते हैं।
  3. योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय।
    सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते॥

    अर्थ: हे धनञ्जय, योग में स्थित रहकर अपने कर्मों को करें, राग-द्वेष को त्यागकर। सफलता और असफलता में समानता को योग कहा जाता है।
  4. अनन्यास्चिन्तयन्तो मां यजन्ति सुमनसाः।
    तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम्॥

    अर्थ: जो लोग मेरी अनन्य भक्ति से मेरी पूजा करते हैं, उनके लिए मैं योग और सम्पत्ति की रक्षा करता हूँ।
  5. अशान्तस्य कुतः सुखं।
    अर्थ: अशांत व्यक्ति को सुख कैसे मिल सकता है?
  6. न हि देहभृता शक्यं त्यक्तुं कर्माण्यशेषतः।
    यस्तु कर्मफलत्यागी स त्यागीत्यभिधीयते॥

    अर्थ: देहधारी व्यक्ति द्वारा सभी कर्मों का त्याग करना असंभव है; जो कर्मफल का त्याग करता है, वह त्यागी कहलाता है।
  7. ज्ञानं परमं दिव्यं, ज्ञानं योगमयीं सदा।
    अर्थ: ज्ञान परम दिव्य है और यह योगमयी होती है।
  8. अधिकारीभूतं साध्यम्, सर्वान्मुक्तिप्रदायकम्।
    अर्थ: जो सबको मुक्ति प्रदान करता है, वही साध्य होता है।
  9. शरीरं केवलं कर्माणि, आत्मा केवलं ज्ञानम्।
    अर्थ: शरीर कर्मों का केंद्र है, जबकि आत्मा ज्ञान का केंद्र है।
  10. कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
    अर्थ: तुम्हारा अधिकार केवल कर्म में है, फलों में नहीं।
  11. न जातु मनुष्यों वियोगः कर्तव्यस्य कर्मणः।
    अर्थ: मानव कभी भी अपने कर्तव्य कर्म से विमुक्त नहीं हो सकता।
  12. न आत्मनं प्रियं यास्यति, कर्मनिरोधनं हि।
    अर्थ: आत्मा को प्रिय नहीं मानते हुए कर्म का पालन करना सही है।
  13. अशान्ति: स्वधर्मे स्थितं, अहिंसया परं सुखम्।
    अर्थ: स्वधर्म में स्थिर रहकर अशांति को दूर करें, अहिंसा से परम सुख प्राप्त करें।
  14. न ते सम्पदसस्त्व्यक्ताः, सम्पत्ति: संसृतात्मिका।
    अर्थ: जो सम्पत्ति अज्ञात है, वह संसारिक नहीं है।
  15. संसारविभवस्यैव, धर्मार्थो न विस्मृतः।
    अर्थ: संसारिक समृद्धि की ओर धर्म और अर्थ की ओर ध्यान दें।
  16. कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
    अर्थ: तुम्हारा अधिकार केवल कर्म में है, फलों में नहीं।
  17. न हि देहभृता शक्यं त्यक्तुं कर्माण्यशेषतः।
    अर्थ: देहधारी व्यक्ति द्वारा सभी कर्मों का त्याग करना असंभव है।
  18. सुखदुःखे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ।
    अर्थ: सुख और दुःख, लाभ और हानि, विजय और पराजय को समान मानकर कर्म करो।
  19. न जायते म्रियते वा कदाचि, न्नायं भूत्वा।
    अर्थ: आत्मा न तो जन्म लेती है, न मरती है; वह सदा अविनाशी है।
  20. यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति।
    अर्थ: जो मुझमें सब कुछ देखता है और सब कुछ मुझमें देखता है, वह ज्ञानी है।
  21. अक्षरं परमं व्याप्तं, सर्वस्याधितिश्वरम्।
    अर्थ: अक्षर परमात्मा सभी वस्तुओं में व्याप्त है और सर्वशक्तिमान है।
  22. स्वधर्मे निधनं श्रेयो, परधर्मो भयावहः।
    अर्थ: अपने धर्म की मृत्यु ही श्रेणी होती है; दूसरों के धर्म को अपनाना भयावह है।
  23. विद्या विनयेन शोभते, अद्वितीयं च भारत।
    अर्थ: विद्या विनय के साथ सजती है, और यह अद्वितीय है, हे भारत।
  24. न कर्मणामनारम्भान्नैष्कर्म्यं प्रवर्धते।
    अर्थ: कर्मों की अनदेखी से निष्कर्मता नहीं बढ़ती है।
  25. सर्वकर्माणि मनसा संन्यासः कृतं हि।
    अर्थ: सभी कर्मों का मानसिक संन्यास ही सही है।
  26. अहिंसां परमं पुण्यम्, अहिंसा परमा गति:।
    अर्थ: अहिंसा सबसे बड़ा पुण्य है; अहिंसा परम लक्ष्य है।
  27. आत्मनं साक्षिणं ज्ञात्वा, कर्माणि न त्यजेत्।
    अर्थ: आत्मा को साक्षी मानकर कर्मों का त्याग नहीं करना चाहिए।
  28. शरीरमध्यस्थोऽयं, आत्मा हि शरीरविपर्ययः।
    अर्थ: आत्मा शरीर के भीतर स्थित है, और शरीर की उलझनों से मुक्त है।
  29. सन्तुष्टोऽयं योगी नित्यम्, कर्मण्येव साधकः।
    अर्थ: संतुष्ट योगी हमेशा कर्मों में संलग्न रहता है।
  30. विद्या दानं परं पुण्यम्, विद्या परं शान्ति।
    अर्थ: विद्या सबसे बड़ा पुण्य है; विद्या से शांति प्राप्त होती है।
  31. कर्मसंगेन मुक्तः, कर्मणि च अनुष्ठितम्।
    अर्थ: कर्म से संलग्न होकर मुक्ति प्राप्त होती है, और कर्म का पालन करना आवश्यक है।
  32. न योगभ्रम निश्चेता, कर्मफलसमोऽमितः।
    अर्थ: योग में भ्रम न हो, कर्मफल समान रूप से प्राप्त हो।
  33. आत्मनं शुद्धकर्माणि, सर्वसिद्धिं साधयेत्।
    अर्थ: आत्मा को शुद्ध कर्मों से सम्पूर्ण सिद्धि प्राप्त होती है।
  34. मोहात्संयुक्तमनसः, मुमुक्षुः शरणं गत्वा।
    अर्थ: मोह में संलग्न मन वाला व्यक्ति मुक्ति की खोज करता है।
  35. न विज्ञानं न च धर्मं, ज्ञानं युक्तिरुपलब्धम्।
    अर्थ: ज्ञान और धर्म दोनों को समर्पित करना आवश्यक है।
  36. न हि कर्माणि पूर्णानि, अज्ञानवशम् प्राप्ति।
    अर्थ: पूर्ण कर्म अज्ञान के प्रभाव से प्राप्त होते हैं।
  37. सदा प्रज्ञात्मिका चिता, परं धन्यं च ज्ञानम्।
    अर्थ: हमेशा प्रज्ञा में स्थित मन, ज्ञान को धन्य बनाता है।
  38. न हि कर्मसंगत्यागं, सर्वसिद्धिरुपलब्धम्।
    अर्थ: कर्म की संगति का त्याग पूर्ण सफलता को प्राप्त करता है।
  39. कर्मण्येवाधिकारस्ते, कर्मफलस्य न हेतुः।
    अर्थ: केवल कर्म में अधिकार है, कर्मफल में नहीं।
  40. योगनिष्ठः सदा कर्म, मोक्षमार्गे कृतं।
    अर्थ: योग में निष्ठा रखने वाला व्यक्ति मोक्षमार्ग पर चलता है।
  41. सर्वेषां च हितार्थः, कर्मसिद्धिः सदा प्रियः।
    अर्थ: सभी के हित के लिए कर्म की सिद्धि प्रिय होती है।
  42. सत्यं ब्रूयात्पृथिव्यां, सम्यग्वेदितुमेव।
    अर्थ: सत्य बोलना पृथ्वी पर सर्वश्रेष्ठ है; इसे सही रूप से समझना आवश्यक है।
  43. सदा ज्ञानयुक्तः सदा, कर्मपथे सदा स्थितः।
    अर्थ: हमेशा ज्ञानयुक्त रहकर कर्मपथ पर स्थित रहना चाहिए।
  44. शान्ति: सर्वभूतानां, निर्वाणं च समाश्रयम्।
    अर्थ: शांति सभी प्राणियों के लिए आवश्यक है; निर्वाण प्राप्ति के लिए शांति है।
  45. योगी चित्तस्वरूपः, ज्ञानं सदा भूतलम्।
    अर्थ: योगी का चित्त स्वभाव से ज्ञानी होता है; ज्ञान धरती पर सदा है।
  46. अज्ञानवशे कार्याणि, कर्मविपरीतमानम्।
    अर्थ: अज्ञान के प्रभाव से कर्म विपरीत होता है।
  47. धर्मे स्थिता सदा शान्तः, कर्मसिद्धिः सदा।
    अर्थ: धर्म में स्थिर व्यक्ति हमेशा शांति में रहता है, और कर्म की सिद्धि प्राप्त होती है।
  48. सदा स्वधर्मे स्थितं, कर्माणि सदा प्रियं।
    अर्थ: अपने धर्म में स्थिर रहना और कर्मों को प्रिय मानना चाहिए।
  49. वेदवेदान्तपंथानां, सर्वं सत्यं च शाश्वतं।
    अर्थ: वेद और वेदांत के मार्ग पर सभी सत्य और शाश्वत हैं।
  50. अभय पर संस्कृत श्लोक हिन्दी में
  51. दया पर संस्कृत श्लोक हिंदी में
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