भगवद गीता के 50 संक्षिप्त श्लोक और उनके हिंदी अर्थ
धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः। मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत सञ्जय॥ अर्थ: धर्मभूमि कुरुक्षेत्र में एकत्रित होकर, युद्ध के लिए तत्पर कौरव और पाण्डव ने क्या किया, हे संजय?
नासतो विद्यते भावो नाभावो विद्यते सतः। उभयोरपि दृष्टान्तः त्वनयोस्तत्त्वदर्शिभिः॥ अर्थ: जो असत्य है, उसकी कोई अस्तित्व नहीं; और जो सत्य है, उसका कभी अभाव नहीं होता। इस सिद्धांत को ज्ञानी जानते हैं।
योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय। सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते॥ अर्थ: हे धनञ्जय, योग में स्थित रहकर अपने कर्मों को करें, राग-द्वेष को त्यागकर। सफलता और असफलता में समानता को योग कहा जाता है।
अनन्यास्चिन्तयन्तो मां यजन्ति सुमनसाः। तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम्॥ अर्थ: जो लोग मेरी अनन्य भक्ति से मेरी पूजा करते हैं, उनके लिए मैं योग और सम्पत्ति की रक्षा करता हूँ।
अशान्तस्य कुतः सुखं। अर्थ: अशांत व्यक्ति को सुख कैसे मिल सकता है?
न हि देहभृता शक्यं त्यक्तुं कर्माण्यशेषतः। यस्तु कर्मफलत्यागी स त्यागीत्यभिधीयते॥ अर्थ: देहधारी व्यक्ति द्वारा सभी कर्मों का त्याग करना असंभव है; जो कर्मफल का त्याग करता है, वह त्यागी कहलाता है।
ज्ञानं परमं दिव्यं, ज्ञानं योगमयीं सदा। अर्थ: ज्ञान परम दिव्य है और यह योगमयी होती है।
अधिकारीभूतं साध्यम्, सर्वान्मुक्तिप्रदायकम्। अर्थ: जो सबको मुक्ति प्रदान करता है, वही साध्य होता है।
शरीरं केवलं कर्माणि, आत्मा केवलं ज्ञानम्। अर्थ: शरीर कर्मों का केंद्र है, जबकि आत्मा ज्ञान का केंद्र है।
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। अर्थ: तुम्हारा अधिकार केवल कर्म में है, फलों में नहीं।
न जातु मनुष्यों वियोगः कर्तव्यस्य कर्मणः। अर्थ: मानव कभी भी अपने कर्तव्य कर्म से विमुक्त नहीं हो सकता।
न आत्मनं प्रियं यास्यति, कर्मनिरोधनं हि। अर्थ: आत्मा को प्रिय नहीं मानते हुए कर्म का पालन करना सही है।
अशान्ति: स्वधर्मे स्थितं, अहिंसया परं सुखम्। अर्थ: स्वधर्म में स्थिर रहकर अशांति को दूर करें, अहिंसा से परम सुख प्राप्त करें।
न ते सम्पदसस्त्व्यक्ताः, सम्पत्ति: संसृतात्मिका। अर्थ: जो सम्पत्ति अज्ञात है, वह संसारिक नहीं है।
संसारविभवस्यैव, धर्मार्थो न विस्मृतः। अर्थ: संसारिक समृद्धि की ओर धर्म और अर्थ की ओर ध्यान दें।
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। अर्थ: तुम्हारा अधिकार केवल कर्म में है, फलों में नहीं।
न हि देहभृता शक्यं त्यक्तुं कर्माण्यशेषतः। अर्थ: देहधारी व्यक्ति द्वारा सभी कर्मों का त्याग करना असंभव है।
सुखदुःखे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ। अर्थ: सुख और दुःख, लाभ और हानि, विजय और पराजय को समान मानकर कर्म करो।
न जायते म्रियते वा कदाचि, न्नायं भूत्वा। अर्थ: आत्मा न तो जन्म लेती है, न मरती है; वह सदा अविनाशी है।
यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति। अर्थ: जो मुझमें सब कुछ देखता है और सब कुछ मुझमें देखता है, वह ज्ञानी है।
अक्षरं परमं व्याप्तं, सर्वस्याधितिश्वरम्। अर्थ: अक्षर परमात्मा सभी वस्तुओं में व्याप्त है और सर्वशक्तिमान है।
स्वधर्मे निधनं श्रेयो, परधर्मो भयावहः। अर्थ: अपने धर्म की मृत्यु ही श्रेणी होती है; दूसरों के धर्म को अपनाना भयावह है।
विद्या विनयेन शोभते, अद्वितीयं च भारत। अर्थ: विद्या विनय के साथ सजती है, और यह अद्वितीय है, हे भारत।
न कर्मणामनारम्भान्नैष्कर्म्यं प्रवर्धते। अर्थ: कर्मों की अनदेखी से निष्कर्मता नहीं बढ़ती है।
सर्वकर्माणि मनसा संन्यासः कृतं हि। अर्थ: सभी कर्मों का मानसिक संन्यास ही सही है।
अहिंसां परमं पुण्यम्, अहिंसा परमा गति:। अर्थ: अहिंसा सबसे बड़ा पुण्य है; अहिंसा परम लक्ष्य है।
आत्मनं साक्षिणं ज्ञात्वा, कर्माणि न त्यजेत्। अर्थ: आत्मा को साक्षी मानकर कर्मों का त्याग नहीं करना चाहिए।
शरीरमध्यस्थोऽयं, आत्मा हि शरीरविपर्ययः। अर्थ: आत्मा शरीर के भीतर स्थित है, और शरीर की उलझनों से मुक्त है।
सन्तुष्टोऽयं योगी नित्यम्, कर्मण्येव साधकः। अर्थ: संतुष्ट योगी हमेशा कर्मों में संलग्न रहता है।
विद्या दानं परं पुण्यम्, विद्या परं शान्ति। अर्थ: विद्या सबसे बड़ा पुण्य है; विद्या से शांति प्राप्त होती है।
कर्मसंगेन मुक्तः, कर्मणि च अनुष्ठितम्। अर्थ: कर्म से संलग्न होकर मुक्ति प्राप्त होती है, और कर्म का पालन करना आवश्यक है।
न योगभ्रम निश्चेता, कर्मफलसमोऽमितः। अर्थ: योग में भ्रम न हो, कर्मफल समान रूप से प्राप्त हो।
आत्मनं शुद्धकर्माणि, सर्वसिद्धिं साधयेत्। अर्थ: आत्मा को शुद्ध कर्मों से सम्पूर्ण सिद्धि प्राप्त होती है।
मोहात्संयुक्तमनसः, मुमुक्षुः शरणं गत्वा। अर्थ: मोह में संलग्न मन वाला व्यक्ति मुक्ति की खोज करता है।
न विज्ञानं न च धर्मं, ज्ञानं युक्तिरुपलब्धम्। अर्थ: ज्ञान और धर्म दोनों को समर्पित करना आवश्यक है।
न हि कर्माणि पूर्णानि, अज्ञानवशम् प्राप्ति। अर्थ: पूर्ण कर्म अज्ञान के प्रभाव से प्राप्त होते हैं।
सदा प्रज्ञात्मिका चिता, परं धन्यं च ज्ञानम्। अर्थ: हमेशा प्रज्ञा में स्थित मन, ज्ञान को धन्य बनाता है।
न हि कर्मसंगत्यागं, सर्वसिद्धिरुपलब्धम्। अर्थ: कर्म की संगति का त्याग पूर्ण सफलता को प्राप्त करता है।
कर्मण्येवाधिकारस्ते, कर्मफलस्य न हेतुः। अर्थ: केवल कर्म में अधिकार है, कर्मफल में नहीं।
योगनिष्ठः सदा कर्म, मोक्षमार्गे कृतं। अर्थ: योग में निष्ठा रखने वाला व्यक्ति मोक्षमार्ग पर चलता है।
सर्वेषां च हितार्थः, कर्मसिद्धिः सदा प्रियः। अर्थ: सभी के हित के लिए कर्म की सिद्धि प्रिय होती है।
सत्यं ब्रूयात्पृथिव्यां, सम्यग्वेदितुमेव। अर्थ: सत्य बोलना पृथ्वी पर सर्वश्रेष्ठ है; इसे सही रूप से समझना आवश्यक है।
सदा ज्ञानयुक्तः सदा, कर्मपथे सदा स्थितः। अर्थ: हमेशा ज्ञानयुक्त रहकर कर्मपथ पर स्थित रहना चाहिए।
शान्ति: सर्वभूतानां, निर्वाणं च समाश्रयम्। अर्थ: शांति सभी प्राणियों के लिए आवश्यक है; निर्वाण प्राप्ति के लिए शांति है।
योगी चित्तस्वरूपः, ज्ञानं सदा भूतलम्। अर्थ: योगी का चित्त स्वभाव से ज्ञानी होता है; ज्ञान धरती पर सदा है।
अज्ञानवशे कार्याणि, कर्मविपरीतमानम्। अर्थ: अज्ञान के प्रभाव से कर्म विपरीत होता है।
धर्मे स्थिता सदा शान्तः, कर्मसिद्धिः सदा। अर्थ: धर्म में स्थिर व्यक्ति हमेशा शांति में रहता है, और कर्म की सिद्धि प्राप्त होती है।
सदा स्वधर्मे स्थितं, कर्माणि सदा प्रियं। अर्थ: अपने धर्म में स्थिर रहना और कर्मों को प्रिय मानना चाहिए।
वेदवेदान्तपंथानां, सर्वं सत्यं च शाश्वतं। अर्थ: वेद और वेदांत के मार्ग पर सभी सत्य और शाश्वत हैं।