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दान पर संस्कृत श्लोक-Sanskrit Shlok in Hindi on daan

  • सुक्षेत्रे वापयेद्बीजं सुपात्रे निक्षिपेत् धनम् ।
  • सुक्षेत्रे च सुपात्रे च ह्युप्तं दत्तं न नश्यति ॥
  • अच्छे खेत में बीज बोना चाहिए, सुपात्र को धन देना चाहिए । अच्छे खेत में बोया हुआ और सुपात्र को दिया हुआ, कभी नष्ट नहीं होता ।
  • अल्पमपि क्षितौ क्षिप्तं वटबीजं प्रवर्धते ।
  • जलयोगात् यथा दानात् पुण्यवृक्षोऽपि वर्धते ॥
  • जमीन पर डाला हुआ छोटा सा वटवृक्ष का बीज, जैसे जल के योग से बढता है, वैसे पुण्यवृक्ष भी दान से बढता है ।
  • सार्थः प्रवसतो मित्रं भार्या मित्रं गृहे सतः ।
  • आतुरस्य भिषग् मित्रं दानं मित्रं मरिष्यतः ॥
  • कांरवाँ प्रवासी का मित्र है, पत्नी गृह में रहेनेवाले की मित्र है, वैद्य रोगी का और दान मरते हुए मनुष्य का (या मर्त्य मनुष्य का) मित्र है ।
  • नेन प्राप्यते स्वर्गो दानेन सुखमश्नुते ।
  • इहामुत्र च दानेन पूज्यो भवति मानवः ॥
  • दान से स्वर्ग प्राप्त होता है, दान से सुख भोग्य बनते हैं । यहाँ और परलोक में इन्सान दान से पूज्य बनता है ।
  • हस्तस्य भूषणं दानं सत्यं कण्ठस्य भूषणम् ।
  • श्रोत्रस्य भूषणं शास्त्रं भूषणैः किं प्रयोजनम् ॥
  • हाथ का भूषण दान है, कण्ठ का सत्य, और कान का भूषण शास्त्र है, तो फिर अन्य आभूषणों की क्या आवश्यकता है ?
  • न्यायागतेन द्र्व्येण कर्तव्यं पारलौकिकम् ।
  • दानं हि विधिना देयं काले पात्रे गुणान्विते ॥
  • न्यायपूर्ण मिले हुए धन से, पारलौकिक कर्तव्य करना चाहिए । दान विधिपूर्वक, गुणवान मनुष्य को, सही समयपर देना चाहिए ।
  • मातापित्रो र्गुरौ मित्रे विनीते चोपकारिणि ।
  • दीनानाथ विशिष्टेषु दत्तं तत्सफलं भवेत् ॥
  • माता-पिता को, गुरु को, मित्र को, संस्कारी लोगों को, उपकार करनेवाले को और खासकर दीन-अनाथ को (या ईश्वर को) जो दिया जाता है, वह सफल होता है ।
  • न रणे विजयात् शूरोऽध्ययनात् न च पण्डितः
  • न वक्ता वाक्पटुत्वेन न दाता चार्थ दानतः ।
  • इन्द्रियाणां जये शूरो धर्मं चरति पण्डितः
  • हित प्रायोक्तिभिः वक्ता दाता सन्मान दानतः ॥
  • रणमैदान में विजय प्राप्त करने से नहीं, बल्कि इंद्रियविजय से इन्सान शूर कहलाता है; अध्ययन से नहीं, बल्कि धर्माचरण से इन्सान पण्डित कहलाता है; वाक्चातुर्य से नहीं, पर हितकारक वाणी से व्यक्ति वक्ता कहलाता है; और (केवल) धन देने से नहीं, बल्कि सम्मान देने से (सम्मानपूर्वक देने से) इन्साना दाता बनता है ।
Sanskrit Shlok in Hindi on daan
  • देयं भो ह्यधने धनं सुकृतिभिः नो सञ्चितं सर्वदा
  • श्रीकर्णस्य बलेश्च विक्रमपते रद्यापि कीर्तिः स्थिता ।
  • आश्चर्यं मधु दानभोगरहितं नष्टं चिरात् सञ्चितम्
  • निर्वेदादिति पाणिपादयुगलं घर्षन्त्यहो मक्षिकाः ॥
  • निर्धन को धन देना चाहिए क्यों कि सत्पुरुषों ने कदापि उसका संचय नहीं किया, (देखो) श्री कर्ण, बलि और विक्रम की कीर्ति आज तक स्थिर रही है । (दूसरी ओर) आश्चर्य है कि मधुमक्खीयों ने मधु का दीर्घकाल तक केवल संचय ही किया, न तो उसका दान किया और न उपभोग !
  • वक्ता दशसहस्त्रेषु दाता भवति वा न वा ॥
  • शूर सौ में एक, पण्डित हजार में एक और वक्ता दसहजार में एक हो सकता है; पर दाता तो कोई मुश्किल से ही मिलता है ।
  • दानं ख्यातिकरं सदा हितकरं संसार सौख्याकरं
  • नृणां प्रीतिकरं गुणाकरकरं लक्ष्मीकरं किङ्करम् ।
  • स्वर्गावासकरं गतिक्षयकरं निर्वाणसम्पत्करम्
  • वर्णायु र्बलबुद्धि वर्ध्दनकरं दानं प्रदेयं बुधैः ॥
  • दान ख्याति बढानेवाला, सदा हित करनेवाला, संसार सुखी करनेवाला, प्रीतिकर, गुणों का लानेवाला, लक्ष्मीदायक, सेवकरुप, स्वर्गदाता, गति क्षय करनेवाला, मोक्षरुप संपत्त देनेवाला, आयुष्य, बल और बुद्धिदाता है । (इस लिए) बुद्धिमान् लोगों ने दान करना चाहिए ।
Sanskrit Shlok in Hindi on daan
  • देयं भेषजमार्तस्य परिश्रान्तस्य चासनम् ।
  • तृषितस्य च पानीयं क्षुधितस्य च भोजनम् ॥
  • पीडित को औषध, थके हुए को आसन, प्यासे को पानी और भूखे को भोजन देना चाहिए ।
  • गोदुग्धं वाटिकापुष्पं विद्या कूपोदकं धनम् ।
  • दानाद्विवर्धते नित्यमदानाच्च विनश्यति ॥

दान करने से (हर प्रकार की समृद्धि जैसे..) गाय का दूध, बाग के फूल, विद्या, कूए का पानी और धन (इत्यादि) नित्य बढते रहते हैं, पर अदान से ये सब नष्ट होते हैं ।

  • दानं वाचः तथा बुद्धेः वित्तस्य विविधस्य च ।
  • शरीरस्य च कुत्रापि केचिदिच्छन्ति पण्डिताः ॥
  • वाणी का, बुद्धि का, विविध प्रकार के धन का, और कहीं तो शरीर का भी दान करने पंडित (विद्वान/सत्पुरुष) इच्छा करते हैं (तैयार रहते हैं) ।
Sanskrit Shlok in Hindi on daan
  • अभिगम्योत्तमं दानमाहूतं चैव मध्यमम् ।
  • अधमं याच्यमानं स्यात् सेवादानं तु निष्फलम् ॥
  • खुद उठकर दिया हुआ दान उत्तम है; बुलाकर दिया हुआ दान मध्यम है; याचना के पश्चात् दिया हुआ दान अधम है; और सेवा के बदले में दिया हुआ दान निष्फल है (अर्थात् वह दान नहीं, व्यवहार है) ।
  • पात्रेभ्यः दीयते नित्यमनपेक्ष्य प्रयोजनम् ।
  • पात्रेभ्यः दीयते नित्यमनपेक्ष्य प्रयोजनम् ।
  • किसी प्रकार के प्रयोजन बिना, जो केवल त्यागबुद्धि से दिया जाता है, वही धर्मदान कहलाता है ।
  • अपात्रेभ्यः तु दत्तानि दानानि सुबहून्यपि ।
  • वृथा भवन्ति राजेन्द्र भस्मन्याज्याहुति र्यथा ॥

हे राजेन्द्र ! जैसे (यज्ञकुंड में बची) भस्म पर घी की आहुति देना निरर्थक है, वैसे ही अपात्र को दिया हुआ बहुत सारा दान व्यर्थ है ।

  • भवन्ति नरकाः पापात् पापं दारिद्य सम्भवम् ।
  • दारिद्यमप्रदानेन तस्मात् दानपरो भव ॥

पाप से नरक उत्पन्न होता है; पाप दारिद्र्य में से, और दारिद्र्य अप्रदान में से निर्माण होता है । अर्थात् तू दान के लिए तत्पर बन । Follow us on facebook

Sanskrit Shlok in Hindi on daan

यद्ददाति यदश्नाति तदेव धनिनो धनम् ।

  • अन्ये मृतस्य क्रीडन्ति दारैरपि धनैरपि ॥
  • धनिक का सच्चा धन तो वही है जो वह (दान) देता है और जो (स्वयं) भोगता है । अन्यथा मरणांतर तो, उसकी स्त्री और धन का उपभोग बाकी के लोग ही करते हैं ।
  • दानेन प्राप्यते स्वर्गो दानेन सुखमश्नुते ।
  • इहामुत्र च दानेन पूज्यो भवति मानवः

दान से स्वर्ग प्राप्त होता है, दान से ही सुख मिलता है । इस लोक और परलोक में इन्सान दान से ही पूज्य बनता है

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