ब्रह्मचारी सुखं त्यक्त्वा योऽनुद्वेगाय कल्पते।
(अर्थ: ब्रह्मचरी सुख को त्यागकर अनुद्वेग की दिशा में प्रयासरत होता है।)
योगीनामपि सर्वेषां यो ब्रह्मचर्येण संयुज्यते।
अर्थ: ब्रह्मचारी योगियों में सभी का अधिकार होता है।)
यः स्त्रीसंगरमात्मानं न संतरोति तदा सुखी भवेत्।
(अर्थ: जो व्यक्ति स्त्रीसंगर से अपने आप को दूर रखता है, वह सुखी होता है।)
ब्रह्मचार्यं प्रतिष्ठाय वीर्यपरिपालनं कुरु।
(अर्थ: ब्रह्मचर्य का पालन करके वीर्य की सुरक्षा करो।)
ब्रह्मचर्यं परान्तायाम् अन्नं निष्कृष्य चेदियते।
(अर्थ: ब्रह्मचर्य के अन्त में अन्न को छोड़ देना चाहिए।)
ब्रह्मचार्यं परमं तपः परं धनं परमं यतः।
(अर्थ: ब्रह्मचर्य, तप, और यथार्थ ज्ञान सबसे बड़ी तपस्या है।)
ब्रह्मचारी यदा वीर्यं प्राप्य पुंस्त्वामिवानघः।
(अर्थ: जब एक ब्रह्मचारी वीर्य को प्राप्त करता है, तो वह देवता के समान पवित्र हो जाता है।)
ब्रह्मचार्यं चरन्त्याशु विवृद्धाः सर्वयोनयः।
(अर्थ: ब्रह्मचारी जल्दी ही सभी जीवों को उत्पन्न करने वाले स्त्री पुरुषों के बच्चों को पैदा करते हैं।)
ब्रह्मचर्यं यो विद्यायां योगाभ्यासे च संयुज्यते।
(अर्थ: जो व्यक्ति विद्या और योग के पालन में लगा होता है, वह ब्रह्मचर्य को प्राप्त करता है।)
यः पुंसां सप्त वदनाद्विवृत्य च त्रिंशद्द्विषत्सु विद्यात्।
(अर्थ: जो व्यक्ति सप्त वाक्यों का अर्थ विस्तार से बता सकता है और त्रिंशत् विद्याओं को जानता है, वह शास्त्रों को सिखाता है और शिक्षा देता है।) See: गृहस्थी पर संस्कृत श्लोक हिंदी में
योगिनः परमं ब्रह्मचार्यं प्राप्नुवन्ति नित्यशः।
(अर्थ: योगी नित्य ब्रह्मचर्य को प्राप्त करते हैं।)
यः पुंसां दर्शनं कुर्वीत प्रतिगृह्णाति च मैथुनम्। तं पुंसां भ्रूणभाग्यं यत्र ब्रह्मचारिणः स्थिताः।।
(अर्थ: जो व्यक्ति दूसरों के संग देखता है और शारीरिक संबंध बनाता है, उस पुरुष के ब्रह्मचारी होने का भाग्य नहीं होता है।)
अहिंसा सत्यमस्तेयं शौचं इन्द्रियनिग्रहः। एते भाः क्रियायोगस्य यमाः स्युर्ब्रह्मचारिणः।।
(अर्थ: अहिंसा, सत्य, अस्तेय, शौच, और इंद्रियों के निग्रह – ये यम ब्रह्मचर्य के क्रियायोग के हिस्से होते हैं।)
ब्रह्मचार्यं तपो दानं यमो नियमो यज्ञश्च।
(अर्थ: ब्रह्मचर्य, तप, दान, यम, नियम, और यज्ञ – ये सभी ब्रह्मचारी के धर्म के हिस्से होते हैं।)
ब्रह्मचार्यं तदुपासीत ब्रह्मचारिणं प्रपद्येत्।
(अर्थ: व्यक्ति को ब्रह्मचार्य का पालन करना चाहिए और वह ब्रह्मचारी के पास जाना चाहिए।)
यो वीर्यं परमं तपः परमं यत्र ब्रह्मचारिणः।
(अर्थ: वीर्य और ब्रह्मचर्य का पालन करने वाले व्यक्ति की तपस्या परम होती है।)
ब्रह्मचार्यं प्रतिष्ठाय धर्मान्यप्यभिगच्छति।
(अर्थ: ब्रह्मचारी धर्म का पालन करके अधिक योग्य होता है।)
यः पुंसां साम्यमाप्नोति साक्षान्मोक्षमिहान्तके।
(अर्थ: जो व्यक्ति सबके साथ समरसता प्राप्त करता है, वह मोक्ष को प्राप्त करता है।)
ब्रह्मचारी यदा वीर्यं प्राप्य पुंस्त्वामिवानघः।
(अर्थ: जब एक ब्रह्मचारी वीर्य को प्राप्त करता है, तो वह देवता के समान पवित्र हो जाता है।)
ब्रह्मचार्यं परमं यत्नं नित्यं कर्मणि कुर्वते।
(अर्थ: ब्रह्मचारी को हमेशा कर्म में ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।