Sansktir Shlok
- श्रुति र्विभिन्ना स्मृतयोऽपि भिन्नाः
नैको मुनि र्यस्य वचः प्रमाणम् ।
धर्मस्य तत्त्वं निहितं गुहायाम्
महाजनो येन गतः स पन्थाः ॥
श्रुति में अलग अलग कहा गया है; स्मृतियाँ भी भिन्न भिन्न कहती हैं; कोई एक ऐसा मुनि नहि केवल जिनका वचन प्रमाण माना जा सके; (और) धर्म का तत्त्व तो गूढ है; इस लिए महापुरुष जिस मार्ग से गये हों, वही मार्ग लेना योग्य है । - अर्जुनः फाल्गुनो जिष्णु र्किरीटी श्वेतवाहनः ।
बीभत्सु र्विजयः कृष्णः सव्यसाची धनञ्जयः ॥
अर्जुन, फाल्गुन, जिष्णु, किरीटी, श्वेतवाहन, बीभत्स, विजय, कृष्ण, सव्यसाची, धनंजय – (ये अर्जुन के नाम हैं) । - भृगुं पुलस्त्यं पुलहं क्रतुमङ्ग़िरसं तथा ।
मरीचिं दक्षमत्रिं च वसिष्ठं चैव मानसम् ॥
भृगु, पुलस्त्य, पुलह, क्रतु, अंगिरस, मरीचि, दक्ष, अत्रि, और वसिष्ठ – ये ब्रह्मा के नौ मानस पुत्र हैं । - धन्वन्तरिक्षपणकामरसिंह शङ्कु
वेताल भट्ट घटकर्पर कालिदासाः ।
ख्यातो वराहमिहिरो नृपतेः सभायां
रत्नानि वै वररुचि र्नव विक्रमस्य ॥
धन्वंतरि, क्षपणक, अमरसिंह, शंकु, वेतालभट्ट, घटकर्पर, कालिदास, वराह, मिहिर, और वररुचि – ये महाराज विक्रम के नवरत्नों जैसे नौ कवि हैं । - अश्वत्थामा बलि र्व्यासो हनुमांश्च बिभीषणः ।
कृपः परशुरामश्च सप्तैते चिरजीविनः ॥
अश्वत्थामा, बलि, व्यास, हनुमान, विभीषण, कृप, और परशुराम, ये सात चिरंजीवि हैं । - युधिष्ठिरः विक्रम शालिवाहनौ
ततो नृपः स्याद्विजयाभिनन्दनः ।
ततस्तु नागार्जुन भूपतिः कलौ
कल्किः षडेते शककारकाः स्मृताः ॥
युधिष्ठिर, विक्रमादित्य, शालिवाहन, विजयाभिनंदन, नागार्जुन, और कलियुग में कल्कि (होगा) – इन छे से शक (भारतीय कालगणना) प्रारंभ हुई (होगी) । - बलि र्बिभीषणो भीष्मः प्रह्लादो नारदो ध्रुवः ।
षडेते बैष्णवा ज्ञेयाः स्मरणं पापनाशनम् ॥
बलि, बिभीषण, भीष्म, प्रह्लाद, नारद, और ध्रुव – इन छे वैष्णवों का स्मरण करने से पाप का नाश होता है । - वह्नि र्वेधाः शशाङ्कश्च लक्ष्मीनाथस्तथैव च ।
नारदस्तुम्बरु श्चैव षड्जादीनां ऋषीश्वराः ॥
अग्नि, ब्रह्मा, चंद्र, विष्णु, नारद, तुंबरु – ये छे संगीत के महर्षि हैं । - website: Trends.sanskritshlok.com
- गणनाथ सरस्वती रवि शुक्र बृहस्पतिन् ।
पञ्चैतानि स्मरेन्नित्यं वेदवाणी प्रवृत्तये ॥
गणेश, सरस्वती, रवि, शुक, और बृहस्पति, इन पाँचों का स्मरण करके हि वेदपठन में प्रवृत्त होना चाहिए । - कृष्णो योगी शुकस्त्यागी राजानौ जनकराघवौ ।
वसिष्ठः कर्मकर्ता च पञ्चैते ज्ञानिनः स्मृताः ॥
योगी श्री कृष्ण, त्यागी शुकदेवजी, राजाओं में जनक और श्री राम, और कर्मरत वसिष्ठ – ये पाँच ज्ञानी माने गये हैं । - बुद्धिमान पर संस्कृत श्लोक हिंदी