श्रुति र्विभिन्ना स्मृतयोऽपि भिन्नाः नैको मुनि र्यस्य वचः प्रमाणम् । धर्मस्य तत्त्वं निहितं गुहायाम् महाजनो येन गतः स पन्थाः ॥ श्रुति में अलग अलग कहा गया है; स्मृतियाँ भी भिन्न भिन्न कहती हैं; कोई एक ऐसा मुनि नहि केवल जिनका वचन प्रमाण माना जा सके; (और) धर्म का तत्त्व तो गूढ है; इस लिए महापुरुष जिस मार्ग से गये हों, वही मार्ग लेना योग्य है ।
भृगुं पुलस्त्यं पुलहं क्रतुमङ्ग़िरसं तथा । मरीचिं दक्षमत्रिं च वसिष्ठं चैव मानसम् ॥ भृगु, पुलस्त्य, पुलह, क्रतु, अंगिरस, मरीचि, दक्ष, अत्रि, और वसिष्ठ – ये ब्रह्मा के नौ मानस पुत्र हैं ।
धन्वन्तरिक्षपणकामरसिंह शङ्कु वेताल भट्ट घटकर्पर कालिदासाः । ख्यातो वराहमिहिरो नृपतेः सभायां रत्नानि वै वररुचि र्नव विक्रमस्य ॥ धन्वंतरि, क्षपणक, अमरसिंह, शंकु, वेतालभट्ट, घटकर्पर, कालिदास, वराह, मिहिर, और वररुचि – ये महाराज विक्रम के नवरत्नों जैसे नौ कवि हैं ।
अश्वत्थामा बलि र्व्यासो हनुमांश्च बिभीषणः । कृपः परशुरामश्च सप्तैते चिरजीविनः ॥ अश्वत्थामा, बलि, व्यास, हनुमान, विभीषण, कृप, और परशुराम, ये सात चिरंजीवि हैं ।
युधिष्ठिरः विक्रम शालिवाहनौ ततो नृपः स्याद्विजयाभिनन्दनः । ततस्तु नागार्जुन भूपतिः कलौ कल्किः षडेते शककारकाः स्मृताः ॥ युधिष्ठिर, विक्रमादित्य, शालिवाहन, विजयाभिनंदन, नागार्जुन, और कलियुग में कल्कि (होगा) – इन छे से शक (भारतीय कालगणना) प्रारंभ हुई (होगी) ।
बलि र्बिभीषणो भीष्मः प्रह्लादो नारदो ध्रुवः । षडेते बैष्णवा ज्ञेयाः स्मरणं पापनाशनम् ॥ बलि, बिभीषण, भीष्म, प्रह्लाद, नारद, और ध्रुव – इन छे वैष्णवों का स्मरण करने से पाप का नाश होता है ।
वह्नि र्वेधाः शशाङ्कश्च लक्ष्मीनाथस्तथैव च । नारदस्तुम्बरु श्चैव षड्जादीनां ऋषीश्वराः ॥ अग्नि, ब्रह्मा, चंद्र, विष्णु, नारद, तुंबरु – ये छे संगीत के महर्षि हैं ।
गणनाथ सरस्वती रवि शुक्र बृहस्पतिन् । पञ्चैतानि स्मरेन्नित्यं वेदवाणी प्रवृत्तये ॥ गणेश, सरस्वती, रवि, शुक, और बृहस्पति, इन पाँचों का स्मरण करके हि वेदपठन में प्रवृत्त होना चाहिए ।
कृष्णो योगी शुकस्त्यागी राजानौ जनकराघवौ । वसिष्ठः कर्मकर्ता च पञ्चैते ज्ञानिनः स्मृताः ॥ योगी श्री कृष्ण, त्यागी शुकदेवजी, राजाओं में जनक और श्री राम, और कर्मरत वसिष्ठ – ये पाँच ज्ञानी माने गये हैं ।
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