राष्ट्र पर संस्कृत श्लोक
यौवनं धनसंपत्ति प्रभुत्वमविवेकिता ।
एकैकमप्यनर्थाय किमु यत्र चतुष्टयम् ॥युवानी, धन, सत्ता और अविवेक ये हर अपने आप में ही अनर्थकारी है, तो फिर जहाँ (एक के पास) चारों चार इकट्ठे हो, तब तो पूछना ही क्या ?
केचिदज्ञानतो नष्टाः केचिन्नष्टाः प्रमादतः ।
केचिज्ज्ञानावलेपेन केचिन्नष्टैस्तु नाशिताः ॥कुछ लोग अज्ञान से बिगड गये हैं, कुछ प्रमाद से, तो कुछ ज्ञान के गर्व से बिगड गये हैं और कुछ लोगों को बिगडे हुए लोगों ने बिगाडा है ।
तपस्या पर संस्कृत श्लोक हिन्दी में
त्यजेदेकं कुलस्यार्थे ग्रामस्यार्थे कुलं त्यजेत् ।
ग्रामं जनपदस्यार्थे आत्मार्थे पृथिवीं त्यजेत् ॥कुल के हितार्थ एक का त्याग करना, गाँव के हितार्थ कुल का, देश के हितार्थ गाँव का और आत्म कल्याण के लिए पृथ्वी का त्याग करना चाहिए ।
See also : दुष्ट पर संस्कृत श्लोक हिंदी में
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