Gyan shlok top sanskrit shlok संसारसागर में जन्म का, बूढापे का, और मृत्यु का दुःख बार आता है, इस लिए (हे मानव !), “जाग, जाग
- न जातु कामः कामानुपभोगेन शाम्यति ।
- हविषा कृष्णवत्मैर्व भुय एवाभिवर्धते ॥
जैसे अग्नि में घी डालने से वह अधिक प्रज्वलित होती है, वैसे भोग भोगने से कामना शांत नहीं होती, उल्टे प्रज्वलित होती है ।
- आशा हि लोकान् बध्नाति कर्मणा बहुचिन्तया ।
- आयुः क्षयं न जानाति तस्मात् जागृहि ॥
बडी चिंता कराके, कर्मो द्वारा आशा इन्सान को बंधन में डालती है । इससे खुद के आयुष्य का क्षय हो रहा है, उसका उसे भान नहीं रहेता; इस लिए “जागृत हो, जागृत हो ।”
- दुष्ट पर संस्कृत श्लोक हिंदी में
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- Gyan shlok in hindi ज्ञान पर संस्कृत श्लोक next part
Gyan shlok top sanskrit shlok
- एकः शत्रु र्न द्वितीयोऽस्ति शत्रुः ।
- अज्ञानतुल्यः पुरुषस्य राजन् ॥
हे राजन् ! इन्सान का एक हि शत्रु है, अन्य कोई नहीं; वह है अज्ञान ।
- जन्मदुःखं जरादुःखं मृत्युदुःखं पुनः ।
- संसार सागरे दुःखं तस्मात् जागृहि ॥
संसारसागर में जन्म का, बूढापे का, और मृत्यु का दुःख बार आता है, इस लिए (हे मानव !), “जाग, जाग !”
- न जातु कामः कामानुपभोगेन शाम्यति ।
- हविषा कृष्णवत्मैर्व भुय एवाभिवर्धते ॥
जैसे अग्नि में घी डालने से वह अधिक प्रज्वलित होती है, वैसे भोग भोगने से कामना शांत नहीं होती, उल्टे प्रज्वलित होती है ।
- आशा हि लोकान् बध्नाति कर्मणा बहुचिन्तया ।
- आयुः क्षयं न जानाति तस्मात् जागृहि ॥
बडी चिंता कराके, कर्मो द्वारा आशा इन्सान को बंधन में डालती है । इससे खुद के आयुष्य का क्षय हो रहा है, उसका उसे भान नहीं रहेता; इस लिए “जागृत हो, जागृत हो ।”
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- एकः शत्रु र्न द्वितीयोऽस्ति शत्रुः ।
- अज्ञानतुल्यः पुरुषस्य राजन् ॥
हे राजन् ! इन्सान का एक हि शत्रु है, अन्य कोई नहीं; वह है अज्ञान ।
- जन्मदुःखं जरादुःखं मृत्युदुःखं पुनः ।
- संसार सागरे दुःखं तस्मात् जागृहि ॥
संसारसागर में जन्म का, बूढापे का, और मृत्यु का दुःख बार आता है, इस लिए (हे मानव !), “जाग, जाग !”
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