ज्ञान पर संस्कृत श्लोक part4

Gyan shlok in hindi ज्ञान पर संस्कृत श्लोक part4
Gyan shlok in hindi ज्ञान पर संस्कृत श्लोक part4

Gyan shlok in hindi ज्ञान पर संस्कृत श्लोक part4

  • यत्ते अग्ने तेजस्तेनाहं तेजस्वी भूयासम् ।
  • यत्ते अग्ने वर्चस्तेनाहं वर्चस्वी भूयासम् ।
  • यत्ते अग्ने हरस्तेनाहं हरस्वी भूयासम् ।

हे अग्नि ! तुम्हारे तेज से मुज़े तेजस्वी बनने दो । तुम्हारे विजयी तेज से मुजे वर्चस्वी बनने दो । सब कचरा जलानेवाले तुम्हारे तेज से मुजे कचरा जलानेवाला बनने दो ।

  • तृषा शुष्यत्यास्ये पिबति सलिलं स्वादु सरिभि
  • क्षुधार्तः सन् शालीन क्वललयति शाकादिवलितान् ।
  • प्रदीप्ते कामाग्नौ सुदृढतरमाश्लिष्यति वधू
  • प्रतीकारं व्याधेः सुखमिति विपर्यस्यति जनः ॥

जब प्यास के कारण गला सुख जाता है, तब मनुष्य स्वादिष्ट, सुगंधी जल पीकर प्यास बुझाता है; भूख से व्याकुल होने पर अनेक मधुर रसयुक्त व्यंजन खाकर अपनी भूख मिटाता है । कामाग्नि प्रदिप्त होने पर, वधू को प्रगाढ आलिंगन पाश में लेकर कामाग्नि को शांत करता है । इस प्रकार दुःख की व्याधि को शमन करने के जो उपाय हैं, उन्हीं को मनुष्य भूल से सुख समजता है ।

  • द्वा सुपर्णा सयुजा सखाया समानं वृक्षं परिषस्वजाते ।
  • तयारन्यः पिप्पलं स्वाद्वत्त्यश्रत्रन्यो अभिचाकशीति ॥

एक साथ रहने वाले तथा परस्पर सख्यभाव रखनेवाले दो पक्षी जीवात्मा एवं परमात्मा, एक हि वृक्ष शरीर का आश्रय लेकर रहते हैं । उन दोनों में से एक जीवात्मा तो उस वृक्ष के फल, कर्मफलों का स्वाद ले-लेकर खाता है । किंतु दूसरा, ईश्वर उनका उपभोग न करता हुआ केवल देखता रहता है ।

Gyan shlok in hindi ज्ञान पर संस्कृत श्लोक part4
  • स्व बालं रोदमानं चिरतरसमयं शान्तिमानेतुमग्रे
  • द्राक्षं खार्जूरमाम्रं सुकदलमथवा योजयत्यम्बिकाऽस्य ।
  • तद्वच्चेताऽतिमय्ठं बहुजनभवान्मौठ संस्कारयोगात्
  • बोधोपायैरनेकैरवशमुपनिषद् बोधयामास सम्यक् ॥

जिस प्रकार दीर्घ काल से रोते हुए अपने बालक को माँ अंगूर, खजूर, आम, केला आदि देकर शांत करती है, वैसे अनेक बार जन्म-मरण होने से, निर्माण हुए अज्ञान के संस्कार के कारण अतिमूढ बने हुए अवश चित्त को समजानेवाले अनेक उपायों का ज्ञान उपनिषदों ने अच्छी तरह से दिया है ।

  • यश्च मूढतमो लोके यश्च बुध्धेः परं गतः ।
  • तावुभौ सुखमेधेते क्लिशयत्यन्तरितो जनः ॥

जो अत्यधिक मूर्ख होते हैं, अथवा जो बुद्धि के परे स्थित परमात्मा स्वरुप को प्राप्त हुए हैं, वे दो ही जन सुखी होते हैं, बीच के मनुष्य क्लेश पाते हैं ।

  • सत्यपि भेदापगमे नाथ तवाहं न मामकीनस्त्वम् ।
  • सामुद्रो हि तरंगः क्वचन समुद्रो न तारंगः ॥

हे नाथ ! आपका और मेरा भेदभाव चला गया है, फिर भी मैं आपका हूँ, (पर) आप मेरे नहीं है ! जिस प्रकार तरंगें समंदर की है, और ना कि समंदर तरंगों का ।

  • पराञ्चि खानि व्यतृणात् स्वयंभू-
  • स्तस्मात्पराङ्पश्यति नान्तरात्मन् ।
  • कश्चिद्धीरः प्रत्यगात्मानमैक्ष-
  • दावृत्तचक्षुरमृतत्वमिच्छन् ॥

स्वयं प्रकट होनेवाले भगवान ने सभी इंद्रियों के द्वार बाहर की ओर जानेवाले हि बनाये हैं । इसलिए, मनुष्य इन्द्रियों द्वारा प्रायः बाहर की वस्तुओं को हि देखता है, अंतरात्मा को नहीं । किसी भाग्यशाली बुद्धिमान मनुष्य ने हि अमरपद को पाने की इच्छा करके चक्षु आदि इंद्रियों को बाह्य विषयों से लौटाकर अंतरात्मा देखा है ।

Gyan shlok in hindi ज्ञान पर संस्कृत श्लोक part4
  • वाग्वैश्वरी शब्दझरी शास्त्रव्याख्यानकौशलम् ।
  • वैदुष्यं विदुषां तद्वत् भुङ्क्तये न तु मुक्तये ॥

विद्वानों की वाणी की कुशलता, शब्दों की धारावाहिता, शास्त्रव्याख्या की कुशलता, और विद्वत्ता, भोग के हि कारण हो सकते हैं, मोक्ष के कारण नहीं ।

  • स्वप्नस्त्रीसंगसौरव्यादपि भृशमसतो या च रेतयुतिः स्यात्
  • स दृश्या तद्वदेतत्स्फुरति जगदसत्कारणं सत्यकल्पम् ।
  • स्वप्ने सत्यः पुमान्स्याद्युवतिरह मृषैवानयोः संयुतिश्च
  • प्रातः शुक्रेण वस्त्रोपहतिरिति यतः कल्पनामूलमेतत् ॥

स्वप्न में जो स्त्रीसंग होता है, वह मिथ्या है, कारण स्त्री हि नहीं है, तो उसका संग कैसे होगा ? परंतु उसके परिणाम स्वरुप जो वीर्यस्खलन होता है, वह सत्य है या नहीं ? वह सत्य है । अर्थात् जगत असत् मिथ्या होगा, फिर भी उसका जो परिणाम है, वह सत्य है ।

  • ब्रह्मसत्वे जगतसत्त्वमिति ।
  • यदभावे तदभावो नेति व्यतिरेकः ।
  • जगदभावे ब्रह्मभावो नेति ।

ब्रह्म है इसलिए जगत है । यह ब्रह्म का जगत से अनुयोगी संबंध है, जैसे कि पिता का पुत्र से ।

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