Sanskrit shlok on brahmcharya:
- यस्य ब्रह्मचर्ये च पथिकानि सुष्ठु सुष्ठु पथिषु चरन्ति। ह्यादाय देवानगनिमित्तमेतद्ब्रह्मपरं सन्निधत्ते।।
- (अर्थ: जो व्यक्ति ब्रह्मचर्य का पालन करता है और सभी मार्गों में शुद्ध रूप से चलता है, वह देवताओं के लिए इस ब्रह्म को प्राप्त करता है।)
- ब्रह्मचर्ये च तपस्याध्यायने च धने च यते ते समग्रे लभ्यन्ते।
- (अर्थ: ब्रह्मचर्य, तपस्या, अध्ययन, और धन, इन सभी चीजों को प्राप्त किया जा सकता है।)
- यः पुंसां सप्त वदनाद्विवृत्य च त्रिंशद्द्विषत्सु विद्यात्। शास्त्राण्याहोपदिशति शिक्षां ददाति तान्त्राद्धि च।।
- (अर्थ: जो व्यक्ति सप्त वाक्यों का अर्थ विस्तार से बता सकता है और त्रिंशत् विद्याओं को जानता है, वह शास्त्रों को सिखाता है और शिक्षा देता है।)
- यो न ह्रीर्यः सुबहुलां ब्रह्मचर्यं चार्याचरणं च प्राप्नुयात्। यस्मिंस्तेजोऽविचिन्त्यं यस्मिंस्तेजोऽविचिन्त्यमानं भवति।।
- (अर्थ: जो व्यक्ति आत्मसंयम और ब्रह्मचर्य की प्राप्ति करने में सक्षम नहीं होता है, उसमें तेजस्वीता का अभाव होता है।)
- ब्रह्मचर्यं प्रतिष्ठायां वीर्यलाभः प्रसीदति।
- (अर्थ: ब्रह्मचर्य का पालन करके वीर्य प्राप्त होता है और सफलता मिलती है।)
- योगी सन्निमित्तेनापि ब्रह्मचर्यद्विजो भवेत्।
- (अर्थ: योगी को ब्रह्मचर्य का पालन करने के बिना भी द्विज बनना चाहिए।)
- ब्रह्मचर्यं यत्र व्याघ्रं पिबेत्तत्र स्नानं कुर्यात्।
- (अर्थ: जहाँ ब्रह्मचर्य तथा व्याघ्र मिलते हैं, वहाँ तीर्थस्नान करें।)
- नियम्य पादयोर्नियम्य कुर्वीत तादृशं योगं नियमाचरणे नियम्यते।
- (अर्थ: योगी अपने पैरों को नियमित रूप से नियमित करके ऐसे योग को नियमाचरण में नियमित करता है।)
- यदि त्वया सर्वथा वीर्यात्मना ब्रह्मचर्यद्धनं दुर्बलं यच्च। तत्त्याज्यतां तद्बलमात्मनस्तथैव वीर्याणि तत्त्यज्यताम्।।
- (अर्थ: अगर तुम्हारे लिए वीर्य और ब्रह्मचर्य का पालन कठिन है, तो वीर्य को त्यागो और अपनी ताकत को बनाओ।)
- यो ब्रह्मचर्यं चरति वीर्यायत्नात्मा चारयति तपस्वि च। स चायं लोके परमोऽपवादो यः क्रियाप्रवृत्तः प्राप्नोति लोकान्।।
- (अर्थ: जो व्यक्ति ब्रह्मचर्य का पालन करता है, वीर्य को सुरक्षित रूप से उपयोग करता है, और तपस्या करता है, वह इस लोक में अवमानित नहीं होता और अगले जीवन में भी उच्च लोक प्राप्त करता है।)
- नियमेन यदि सर्वत्र ब्रह्मचारी विजीविषेत्। अशीष्य यो न कुर्यात्स यदा व्याघ्रः प्रपत्यते।। (अर्थ: यदि कोई व्यक्ति सर्वथा ब्रह्मचर्य का पालन करे और दूसरों को न दुखाए, तो वह व्याघ्र की तरह जीत लेता है।)
- यो वीर्यसमुद्भवे चाविरतानि ब्रह्मचारिणि समर्पयेत्।
- (अर्थ: जो व्यक्ति अपने वीर्य को ब्रह्मचर्य की ओर प्रवृत्त करता है, वह ब्रह्मचारिणियों के लिए अर्पण करता है।)
- आत्मज्ञानविदां ब्रह्मचारिणां योगिनामपि विषयान्तरङ्गतानाम्। यत्नः समायाति दुरात्मसुजिह्वश्च तेषामिन्द्रियाणाम्।।
- (अर्थ: आत्मज्ञानी, ब्रह्मचारी, और योगी भी अपनी इंद्रियों को नियंत्रित करने के लिए समर्पित होते हैं।)
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- ब्रह्मचार्यं तपः सत्यं क्रियायां दानमेव च। यद्दरिद्रस्य धर्मस्य तद्ब्रह्मचर्यमुच्यते।।
- (अर्थ: ब्रह्मचर्य, तप, सत्य, और दान – ये चारों क्रियाएँ गरीब के धर्म का हिस्सा होती हैं। इसलिए, दरिद्र धर्म को ब्रह्मचर्य कहा जाता है।)
- ब्रह्मचार्यं योऽविचिन्त्यमानिमधीयानोऽप्यविचाल्यमानिः। योऽपि विचाल्योऽपि स एव ब्रह्मचारी यः कामकारिणमविते व्रजति।।
- (अर्थ: ब्रह्मचर्य का पालन करने वाला व्यक्ति अपने विचारों को न भटकने देता है, और वायुमंडल में भी अस्पष्ट रहता है। वह कामकारी को भी ब्रह्मचर्य में प्रवृत्त कर देता है।)
- वीर्यं च प्रसवं चैव यद्यप्यन्नपि पश्यति। अन्यथा क्रीडते सूत्रे तस्मात्सुत्रं न भिन्नयेत्।।
- (अर्थ: यदि कोई व्यक्ति वीर्य और प्रसव का संरक्षण नहीं करता है, तो वह सूत्र को न खींचे।)
- यदा ब्रह्मचर्येण परमां समाधिमाप्नोति। तदा सर्वाणि कामानि सहस्रशो युध्यति।।
- (अर्थ: जब कोई व्यक्ति ब्रह्मचर्य के माध्यम से उच्च समाधि प्राप्त करता है, तो वह हजारों कामनाओं के प्रति लड़ता है।)
- आत्मा ब्रह्मचर्यं चिन्तयति यदा विभुस्तदा ब्रह्मचारी भवति।
- (अर्थ: जब आत्मा ब्रह्मचर्य का ध्यान करती है, तो व्यक्ति ब्रह्मचारी बनता है।)
- ब्रह्मचर्यमचरति यस्यास्य प्राणा बलानि च। तं विद्याभ्यास्यं ब्रह्मचार्यं विद्यादधीतायिनः।। (अर्थ: जिसका ब्रह्मचर्य का पालन होता है, उसके प्राण और बल बढ़ते हैं। विद्यार्थी को विद्या और अभ्यास का ध्यान रखना चाहिए।)
- ब्रह्मचारी यदा योगी विशां पुरुषशासनम्। अनन्यध्यायिनां चिन्ता मन्यते यस्य मन्यते।। (अर्थ: जब एक ब्रह्मचारी योगी विश्व के पुरुषों की शासन करता है और उनका मन अनन्य ध्यान में लगा रहता है, तो वहीं उसका मनन होता है।