Sanskrit Shlok
- अहल्या द्रौपदी सीता तारा मन्दोदरी तथा ।
- पञ्चकं ना स्मरेन्नित्यं महापातकनाशनम् ॥
- अहल्या, द्रौपदी, सीता, तारा, और मंदोदरी, इन पाँचों के नित्य स्मरण से (गुण और जीवन स्मरण से) महापातक का नाश होता है ।
- पुण्यश्लोको नलो राजा पुण्यश्लोको युधिष्ठिरः ।
- पुण्यश्लोको विदेहश्च पुण्यश्लोको जनार्दनः ॥
- नल राजा, युधिष्ठिर, विदेही जनक, और जनार्दन – ये पुण्यरुप हैं ।
- लक्ष्मणो लघुसन्धानः दूरपाती च राघवः ।
- कर्णो दृढप्रहारी च पार्थस्यैते त्रयो गुणाः ॥
- लक्ष्मण छोटी वस्तु का वेध करने में काबेल थे; दूर का वध करने में राम निपुण थे; और कर्ण दृढ प्रहार करने में कुशल थे; (पर) पार्थ (अर्जुन) तो इन तीनों गुणों में माहेर था ।
- नीतितत्त्व प्रवक्तारः त्रयः सन्ति धरातले ।
- शुक्रश्च विदुरश्चायं चाणक्यस्तु तृतीयकः ॥
- इस धरा तल पर नीतितत्त्व प्रवर्तन करनेवाले तीन महात्मा हो गये – शुक्र, विदूर और चाणक्य ।
- विजेतव्या लंका चरण-तरणीयो जलनिधिः ।
- विपक्षः पौलस्त्यो रण-भुवि सहायाश्च कपयः
- तथाप्येको रामः सकल-मवधीद्राक्षसकुलम् ।
- क्रियासिद्धिः सत्त्वे भवति महतां नोपकरणे ॥
- लंका जीतनी थी, पैर से चलकर सागर पार करना था, पुलस्त्य ऋषि के पुत्र (रावण) से शत्रुता थी, रणांगण में (केवल) वानर लोग मदत करनेवाले थे; फिर भी अकेले रामचंद्रजी ने राक्षसों का सारा कुल खत्म कर दिया । महान लोगों को काम में सिद्धि सत्त्व से (आत्मबल से) मिलती है, न कि साधनों से ।
- संगः सर्वात्मना हेयः स चेत् त्यक्तुं न शक्यते ।
- स सद्भिःसह कर्तव्यः साधुसंगो हि भेषजम् ॥
- संग/आसक्ति सर्वथा त्याज्य है; पर यदि ऐसा शक्य न हो तो सज्जनों का संग करना । साधु पुरुषों का सहवास जडीबुटी है (हितकारक है) ।
- महानुभावसंसर्गः कस्य नोन्नतिकारकः ।
- रथ्याम्बु जाह्नवीसंगात् त्रिदशैरपि वन्द्यते ॥
- सत्पुरुष का सान्निध्य किसको उपकारक नहीं होता ? गंगा के साथ बेहने पर, गटर का पानी देवों द्वारा भी पूजा जाता है ।
- वज्रादपि कठोराणि मृदुनि कुसुमादपि ।
- लोकोत्तराणां चेतांसि को हि विक्षातुमर्हति ॥
- (बाहर से) वज्र जैसे कठोर महापुरुषों का अंतःकरण पुष्प जैसा कोमल होता है । ऐसे लोकोत्तर अंतःकरण को कौन समज सकता है ?
- अचतुर्वदनो ब्रह्मा द्विबाहुरपरो हरिः ।
- अभाललोचनः शम्भुर्भगवान् बादरायणः ॥
- उनके चार मुख नहीं, फिर भी जो ब्रह्मा है; दो बाहु है, फिर भी हरि (विष्णु) है; मस्तिष्क पर तीसरा नेत्र नहीं, फिर भी शम्भु है; ऐसे भगवान श्री बादरायण (व्यास मुनि) है ।
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