गुरु पर संस्कृत श्लोक हिंदी में
- प्रेरकः सूचकश्वैव वाचको दर्शकस्तथा ।
- शिक्षको बोधकश्चैव षडेते गुरवः स्मृताः ॥
- प्रेरणा देनेवाले, सूचन देनेवाले, (सच) बतानेवाले, (रास्ता) दिखानेवाले, शिक्षा देनेवाले, और बोध करानेवाले – ये सब गुरु समान है ।
- गुरुरात्मवतां शास्ता राजा दुरात्मनाम् ।
- अथा प्रच्छन्नपापानां शास्ता वैवस्वतो यमः ॥
- आत्मवान् लोगों का शासन गुरु करते हैं; दृष्टों का शासन राजा करता है; और गुप्तरुप से पापाचरण करनेवालों का शासन यम करता है (अर्थात् अनुशासन तो अनिवार्य हि है) ।
- दुर्लभं त्रयमेवैतत् देवानुग्रहहेतुकम् ।
- मनुष्यत्वं मुमुक्षुत्वं महापुरुष संश्रयः ॥
- मनुष्यत्व, मुमुक्षत्व, और सत्पुरुषों का सहवास – ईश्वरानुग्रह करानेवाले ये तीन मिलना, अति दुर्लभ है ।
गुरु पर संस्कृत श्लोक हिंदी में Top Guru Shlok in hindi
- किमत्र बहुनोक्तेन शास्त्रकोटि शतेन च ।
- दुर्लभा चित्त विश्रान्तिः विना गुरुकृपां परम् ॥
- बहुत कहने से क्या ? करोडों शास्त्रों से भी क्या ? चित्त की परम् शांति, गुरु के बिना मिलना दुर्लभ है ।
- सर्वाभिलाषिणः सर्वभोजिनः सपरिग्रहाः ।
- अब्रह्मचारिणो मिथ्योपदेशा गुरवो न तु ॥
- अभिलाषा रखनेवाले, सब भोग करनेवाले, संग्रह करनेवाले, ब्रह्मचर्य का पालन न करनेवाले, और मिथ्या उपदेश करनेवाले, गुरु नहि है ।
- निवर्तयत्यन्यजनं प्रमादतः
- स्वयं च निष्पापपथे प्रवर्तते ।
- गुणाति तत्त्वं हितमिच्छुरंगिनाम्
- शिवार्थिनां यः स गुरु र्निगद्यते ॥
- जो दूसरों को प्रमाद करने से रोकते हैं, स्वयं निष्पाप रास्ते से चलते हैं, हित और कल्याण की कामना रखनेवाले को तत्त्वबोध करते हैं, उन्हें गुरु कहते हैं ।
- धर्मज्ञो धर्मकर्ता च सदा धर्मपरायणः ।
- तत्त्वेभ्यः सर्वशास्त्रार्थादेशको गुरुरुच्यते ॥
- धर्म को जाननेवाले, धर्म मुताबिक आचरण करनेवाले, धर्मपरायण, और सब शास्त्रों में से तत्त्वों का आदेश करनेवाले गुरु कहे जाते हैं ।
- गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः ।
- गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः ॥
- गुरु ब्रह्मा है, गुरु विष्णु है, गुरु हि शंकर है; गुरु हि साक्षात् परब्रह्म है; उन सद्गुरु को प्रणाम ।
- दुग्धेन धेनुः कुसुमेन वल्ली
- शीलेन भार्या कमलेन तोयम् ।
- गुरुं विना भाति न चैव शिष्यः
- शमेन विद्या नगरी जनेन ॥
- जैसे दूध बगैर गाय, फूल बगैर लता, शील बगैर भार्या, कमल बगैर जल, शम बगैर विद्या, और लोग बगैर नगर शोभा नहि देते, वैसे हि गुरु बिना शिष्य शोभा नहि देता ।
- विना गुरुभ्यो गुणनीरधिभ्यो
- जानाति तत्त्वं न विचक्षणोऽपि ।
- आकर्णदीर्घायित लोचनोऽपि
- दीपं विना पश्यति नान्धकारे ॥
- जैसे कान तक की लंबी आँखेंवाला भी अँधकार में, बिना दिये के देख नहि सकता, वैसे विचक्षण इन्सान भी, गुणसागर ऐसे गुरु बिना, तत्त्व को जान नहि सकता ।
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